SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 460
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एकादश अध्यायमें हआ है। निरुक्तके एकादश अध्यायमें कुल ५६ शब्दोंके निर्वचन प्राप्त होते हैं। इनमें निघण्टुके पंचम अध्यायके पंचम खण्डके ३६ पद भी सम्मिलित हैं। इस प्रकार २० पद ऐसे हैं जो देवताओं से सम्बद्ध हैं या प्रसंगत: प्राप्त हैं। निघण्टु पठित उक्त सभी ३६ पदोंकी व्याख्या भी यास्क नहीं करते केवल प्रसंगतः उन पदोंका उल्लेख कर पूर्व में व्याख्यात है, कह कर काम चला लेते हैं। वस्तुत: वैसे पदोंको पुन: विवेचित करना पुनरुक्ति दोष से युक्त होता। इतना कहा जा सकता है कि निघण्टु पठित ये सारे शब्द प्रधान रूपमें यहां पठित हैं। अत: ऐसे शब्दोंका निर्वचन यहीं करना चाहिए था जबकि प्रसंगत: आये ये ही शब्द यास्कके द्वारा पूर्व ही व्याख्यात हैं। पूर्व व्याख्यात शब्दोंमें विश्वानरः, विधाता,रूद्रः,अंगिरस ,पितरः, अदितिः, भृगवः सरस्वती, वाक्, यमी, उर्वशी, पृथिवी, गौः, उषा, स्वस्ति और इला परिगणित हैं। इस प्रकार निघण्टु के पंचम अध्याय के पंचम खण्ड के ३६ पद भी व्याख्यात नहीं है। यास्कके सारे निर्वचन भाषा विज्ञान एवं निर्वचन प्रक्रिया की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। यास्क एक पद का एकाधिक निर्वचन भी प्रस्तुत करते हैं। एक से अधिक निर्वचनों में सभी निर्वचन भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे उपयुक्त नहीं हैं भाषा विज्ञानकी दष्टिसे पूर्ण निर्वचनोंमें सोमः, चन्द्रमा, चन्द्रः, मृत्युः,धाता, कलशः, स्वर्कः, तृष्णक्, उदन्युः, ऋभुः, अथर्वाणः, आप्त्याः , आगः, एनस, सरमा, जगुरिः, तक्म, रसा, स्वसा, स्तुकः, नर्यः, इन्द्राणी, धेनः, अध्या, पथ्या और अनः द्रष्टव्य है। इन निर्वचनों में कुछ पदों के एकाधिक निर्वचन भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे अपूर्ण भी हैं। " ध्वन्यात्मक शिथिलताके चलते कुछ निर्वचन भाषा विज्ञानकी दृष्टि से अपूर्ण माने जाते हैं। ध्वन्यात्मक शैथिल्य से युक्त-चन्द्रमा, चन्द्रः, चारू, स्वर्कः, सूची तथा कहः शब्दके निर्वचन प्राप्त होते हैं। इसके अतिरिक्त मरुतः,ऋभः, अंगिरस, किल्विषम्, गौरी तथा रोदसी के निर्वचन भी भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे अपूर्ण है। ध्वन्यात्मक या अर्थात्मक या उभय शिथिलता ही इसके कारण हैं। चन्द्र एवं चंद्रमा शब्दके निर्वचन ज्योतिष शास्त्रीय आधारसे युक्त हैं। कलि: शब्दके निर्वचन में धार्मिक आधार प्रतिलक्षित होता है। कला शब्दके निर्वचन में यास्क ने दृश्यात्मक आधार को अपनाया है। __ सरमा तथा अनुमति शब्द के निर्वचनोंमें यास्क अपनी ऐतिहासिकताका परिचय देते हैं। इससे उक्त शब्दोंके आधारमें इतिहासकी पृष्ठभूमि स्पष्ट होती है। सिनीवाली शब्द सामासिक आधार रखता है। इसके निर्वचनमें यास्क सादृश्यको भी अपनाते हैं। ४६३:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy