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________________ उपयुक्त माना जायगा। (४९) अहिर्बुध्य :- इसका अर्थ होता है अन्तरिक्ष स्थित मेघ। निरुक्तके अनुसार योऽहिः स बुध्यो बुधमन्तरिक्षं तन्निवासात्७४ जो अहि है वही वुध्य है। बुन का अर्थ अन्तरिक्ष होता है, तथा उस बुन (अन्तरिक्ष) में रहने वाले को बध्य कहेंगे। अहिः + बुध्न्यः = अहिर्बुध्यः। इसका भाषा वैज्ञानिक आधार उपयुक्त है। इस निर्वचन में ध्वन्यात्मक तथा अर्थात्मक संगति है। (५०) पुरूरवा :- इसका अर्थ होता है मध्यम स्थानीय वायु। निरुक्तके अनुसार पुरवा वहधा रोरुयते७४ वह वहधा शब्द करता है। इसके अनुसार इस शब्दमें पुरू + रू शब्दे धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषाविज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। कालान्तर में पुरूरवा ऐतिहासिक पात्र के रूप में प्राप्त होता है, जो इला का पुत्र है। -: सन्दर्भ संकेत : १ . नि. १०।१, २ - कृ वा पाजि - उणा. १।१ आतो युक् - अष्टा. ७।३।३३,३ - हलायुघ - पृ.६७३,४ - कृ वृदारिभ्य उनन् - उणा.३१५३, ५. कर्मण्यण् - अष्टा. ३२।१,६ - अ. को.२।८।११८, ७ - स किल पितरं प्रजापतिमिषणाविन्ध्यन्तमनुशोचन् अरूदत् - यदरूदतद्द्रस्य रूद्रत्वम् - काठक सं.२५।१ (नि. १०।१) यदरोदीत्तद् रूद्रस्य रूद्रत्वम् - (नि. १०११) हारिद्रविक सं., ८ - रोदेर्णिलुक् च - उणा. २२२२, ९ - जराबोध तद विविड्डिविशेविशे यज्ञियाय स्तोमं रूद्राय दृशीकम्।। ऋ. १।२७।१०, १० - अम. को. १।१।३४, ११ - युजिरूचितिजां कुश्च - उणा. १।१४६, १२ - ऐ. ब्रा. ७।१९।२, १३ . ऋ. १।३९, २२६१, १३।९२ आदि (द्र. वै. इ. भा. १ पृ.६८), १४ - घार्थे कविधानम् - स्था स्ना पा हनियुध्यर्थम् - वा. ३।३।५८, १५ - ऋ. १।६६७, ५८६३, ७।२५।१,२।१३१७ (द्रं. वै. इण्ड. भाग १ पृ. ४०२) १६ . तौति पूरयति गृहमिति। तु पूर्ती + वाहुलकात् कः (शब्द कल्पद्रुम - भाग २ - पृ.६५०), १७ . क्र. १६४३१२, २।२।११ आदि अथर्वे - १।१३२ आदि, १८ - ऋ. १।३१।१२ आदि।, १९ - अ. को. २१६।२७,२० - वलिमलितनिभ्यः कयन् . उणा. ४।९९, २१ . १९६।४, १८३।३, १८४,५, २ २३।१९, ७।१ ।२१ आदि, २२ - हला. पृ. ३२४ (चै. इ. भाग १ पृ. ३३३), २३ . षिद्भिदादिभ्योङ् . अष्टा. ३।३।१०४, २४ . ऋ. १०८६।११, नि. ११।४, २५. श.प.बा. ६।११।२, २६. ऋजेन्द्र. उणा. २।२८, २७. उन्दिगुधिक्रषिभ्यश्च-उणा. ३१६८, २८. अ.को .. २।३।५, २९. पर्जन्य: उणा.३।१०३,३०. पर्जन्यः शक्रमेघयोः उणा.प्र.सि.को. (द्र.),३१. पर्जन्यो रसदब्देन्द्रो- अ. को. ३।३ । १४७ पर्जन्यो मेघ शब्देऽपि ध्वनदम्बुदशक्रयोः ४६१:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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