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________________ तेजतेरूत्साहकर्मणः यह शब्द उत्साहार्थक तिज् धातुके योगसे निष्पन्न होता है इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार तिज् निशाने धातु से मक् प्रत्यय कर तिग्म शब्द बनाया जा सकता है। 99 (७) आयुधम् :- इसका अर्थ शस्त्र होता है। अश्व, रथ, धनुष, कवच आदि युद्धोपकरण का यह वाचक है। १२ ऋग्वेदमें इसका प्रयोग धनुषवाणके अर्थ में हुआ है। १३ निरुक्त्तके अनुसार आयुधमायोधनात् इसके अनुसार आड् युध् धातुके योगसे आयुध शब्द निष्पन्न माना जायगा क्योंकि इसकी सहायतासे युद्ध किया जाता है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा । व्याकरणके अनुसार आयुक्क प्रत्यय कर आयुधम् शब्द बनाया जा सकता है । १४ (८) दिद्युत् :- इसका अर्थ आयुध होता है। निरुक्तके अनुसार (१) दिद्युत्, द्यतेर्वा" यह शब्द दो अवखण्डने धातुके योगसे निष्पन्न होता है, क्योंकि यह शत्रुओंको अवखण्डन करता है। (२) द्युतेर्वा' इसके अनुसार यह शब्द द्यु अभिगमे धातुके योगसे निष्पन्न हुआ है क्योंकि यह शत्रुओंकी ओर अभिगमन करता है। (३) द्योततेर्वा इसके अनुसार इस शब्दमें द्युत् दीप्तौ धातुका योग है, क्योंकि यह चमकता रहता है। प्रथम तथा अंतिम निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। शेष निर्वचनोंका अर्थात्मक महत्त्व है प्रथम निर्वचनसे क्रियात्मकता भी स्पष्ट होती है । व्याकरणके अनुसार दो अवखण्डŁक्विप् - द्वित्व कर या द्युत् दाप्तौ धातुसे क्विप् - द्वित्व कर दिद्युत् शब्द बनाया जा सकता है। ऋग्वेद में यह दिव्यास्त्र या वाणका वाचक है।94 (९) तोकम् :- इसका अर्थ पुत्र होता है। निरुक्तके अनुसार - तोकम् :१ तोक शब्द तुद् व्यथने धातुके योगसे निष्पन्न होता है, क्योंकि यह व्यथाका कारण होता है। इसका ध्वन्यात्मक आधार उपयुक्त है। यास्कके समयमें पुत्र · तुद्यते : १ C दुःखका कारण होता होगा। आजकल इसे सुखका कारण माना जाता है। आजकल . इसकी अर्थात्मकता पूर्ण संगत नहीं मानी जायगी। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार तु पूर्ती धातुसे कः प्रत्यय कर तोकम् शब्द बनाया जा सकता है। १६ ऋग्वेदादि में तोक सन्तान तथा वंशजका वाचक है। १७ ऋग्वेदमें पुत्रके अर्थमें भी इसका प्रयोग देखा जाता है। १८ (१०) तनयम् :- यास्कने इसका अर्थ पौत्र किया है। तनयं तनोतेः १ यह शब्द तनु विस्तारे धातु के योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि इससे वंश परंपरा ४४८ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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