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________________ इस पदकी व्याख्या हुई हैं। यह निर्वचन समासाश्रित है। 7. 'देवा वै मृत्योर्विभ्यतस्त्रयीं विद्या प्राविशंस्ते छन्दोभिरच्छादयन्यदेभिरच्छादयंस्तच्छन्दसां छन्दस्त्वम् ।।" यहां छन्द शब्दका निर्वचन प्राप्त होता है। मृत्युसे भयभीत देवताओं ने त्रयी विद्यामें प्रवेश किया। उन्होंने अपनेको छन्दोंसे आच्छादित किया । उन्होंने जो उनके द्वारा अपनेको आच्छादित किया वही छन्दोंका छन्दस्त्व है | स्पष्ट है छन्दस् शब्दमें छद्धातुका योग है। छद्धातुसे छन्दः शब्दका निर्वचन निरुक्तमें भी प्राप्त होता है। उपनिषदोंके इन निर्वचनोंसे स्पष्ट होता है कि अर्थाभिव्यक्तिके लिए यहां निर्वचन किए गए हैं। इन निर्वचनोंका अर्थात्मक महत्त्व है । ध्वन्यात्मक दृष्टिसे ये निर्वचन पूर्णतः उपयुक्त नहीं माने जायेंगे । इन निर्वचनोंमें इतिहास प्रकट है। अतः इन निर्वचनोंका ऐतिहासिक महत्त्व है। उपनिषदोंके निर्वचन प्रायः अर्थ निर्वचन हैं तथा भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे भी महत्त्व रखते हैं। सन्दर्भ संकेत 1.वृ0 उ0113 18, 2. छा0 उ01/2 |10. 3. वृ0 उ0113 20,4. वृ० उ० 113 121,5. वृ0 उ0113 |22, 6. वृ0 उ0 113 121,7. छा0 उ01/2 |11, 8. वृ० उ0 113 |20,9. छा0 उ0 1 14 12 | (ङ) वृहदेवतामें निर्वचनों का स्वरूप : शौनकीय वृहदेवताका वैदिक साहित्यमें बहुत महत्त्व है। ऋग्वेदके देवताओं एवं पुराकथाओंका सारांश इसमें उल्लिखित हैं । देवताज्ञान के लिए यह बड़ा ही उपादेय है। इसमें भी निर्वचन उपलब्ध होते हैं । वृहदेवता के कुछ निर्वचनोंका परिदर्शन अपेक्षित है:1. वनस्पति तु यं प्राहुरयं सोऽग्निर्वनस्पतिः अयं वनानां हि पतिः पाता पालयतीति वा ।।' इस पद्यमें वनस्पति शब्द व्याख्यात है। वनस्पति वनके पतिके रूप में अग्निका एक रूप है। वह वन का रक्षक है अथवा पालक । वनस्पति शब्द समासाश्रित है। पतिको पा रक्षणे एवं पा पालने धातुसे निष्पन्न माना गया है। निरुक्तमें भी इसी प्रकारका निर्वचन प्राप्त होता है।' ३१ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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