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________________ ऊकण् १४ से मण्डूक शब्द बनाया जाता है। (६) मण्ड :- यह जलका वाचक है। निरुक्तके अनुसार-मण्डो मदे वा मुदेर्वा अर्थात् मण्ड शब्द हर्ष अर्थ रखने वाला मद् या मुद् धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि जलसे स्नान पानादिके द्वारा हर्षकी प्राप्ति होती है। अतः मद् या मुद्- से भण्ड बना। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। (७) अक्षा :- इसका अर्थ होता है जुआ खेलनेका पाशा । निरुक्तके अनुसार अक्षा अश्नुवत एनानिति अर्थात् द्युतक्रीड़ामें लोग इन पाशोंको अपना लेते हैं या खेलने वाले इसे अपने हाथमें रख लेते हैं । १६ इसके अनुसार इस शब्दमें अशूङ् व्याप्तौ धातुका योग है- अश्+स: = अक्ष: । (२) अभ्यश्नुवत एभिरिति वा अर्थात् इससे जुआरी लोग धनसे युक्त हो जाते हैं या इसके चलते जुआरी दुर्गतियोंसे व्याप्त रहते हैं। इसमें भी अशूङ् व्याप्तौ धातुका योग है। इन निर्वचनोंका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। डा. वर्मा भी इसे सर्वथा संगत मानते हैं। १७ व्याकरणके अनुसार अक्ष् व्याप्तौ धातुसे अच् प्रत्यय कर अक्ष: शब्द बनाया जा सकता है । १८ (८) इरिणम् :- इसका अर्थ होता है जल रहित प्रदेश। निरुक्तके अनुसार (१) इरिणं निऋणम् ऋणातेरपार्णं भवति अर्थात् ऋगतौ धातुके योगसे ऋण् शब्द निष्पन्न हुआ- अप+ऋण अपार्णम् । अप का निर् होकर निर् + ऋणम् =निर्ऋणम् पुनः निर् का न लोप होकर इरिणम् हुआ। इसके अनुसार इसका अर्थ होगा गत्यात्मकताकी परिसमाप्ति। (२) अपरता अस्मादोषधय इति वा अर्थात् इन स्थानों से ओषधियां चली जाती है। जल रहित स्थानमें ओषधियां नहीं पनपती । इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार ऋ गतौ-इन किच्च = इरिणम् शब्द बनाया जा सकता है। १९ (९) मौजवत :- इसका अर्थ होता है मूजवान पर्वत पर उत्पन्न। निरुक्तके अनुसार मौजवतौ भूजवति जातः अर्थात् मुजवान पर्वत पर उत्पन्न। यह तद्धितान्त पद है। मूजवान्+तद्धित अण् प्रत्यय = मौजवतः । मूजवान् पर्वत सोमलताका उद्गम स्थल माना जाता था। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा । व्याकरणके अनुसार भी मूजवान्+अण्=मौजवत: शब्द बनाया जा सकता है। (१०) मुञ्ज :- यह मूंज ( सरकण्डे से प्राप्त होने वाला) का वाचक है। ४२५: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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