SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आधार पूर्ण संगत प्रतीत नहीं होता है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे इन निर्वचनोंको पूर्ण स्पष्ट नहीं माना जा सकता। इसकी अपेक्षा संहिताओं के निर्वचन ध्वन्यात्मक दृष्टिसे अधिक स्पष्ट हैं तथापि ब्राह्मण ग्रन्थकी निरुक्तियों की ऐतिहासिकता एवं वैज्ञानिकता उपेक्षणीय नहीं । वैदिक संहिता की अपेक्षा ब्राह्मण ग्रन्थोंमें निर्वचनका विकसित रूप दृश्य होता है। आचार्य यास्कने निर्वचन प्रसंगमें ब्राह्मण ग्रन्थके बहुत सारे सम्बद्ध उद्धरणोंको उपस्थिापित किया है जो निर्वचन सिद्धान्तके अनुकूल हैं । सन्दर्भ संकेत - 1. "त्रिविधा हि शब्द व्यवस्था - प्रत्यक्षवृत्तयः परोक्ष वृत्तयोऽति परोक्षवृत्तयश्च' – नि० दु0 वृ0 1 11, 2. ऐ0 ब्रा0 1 12, 3. ऐ0 ब्रा0 3 133, 4. ऐ0 ब्रा० 3143, 5. ऐ0 ब्रा0 1 16, 6. ऐ0 ब्रा0 33 11 17, 7. "यद् यस्मात्कारणात् अस्यां गर्भधारिण्यामयं पितापुत्ररूपेण पुनर्जायते - ऐ० ब्रा० सा० भा०, 8. श० ब्रा० 1 ।1 13 14, 9. श0 ब्रा0 14 11 11 | 13, 10. श0 ब्रा0 14 16 111 11, 11. कौषी० ब्रा० 23/2, 12. नि0 1/3 (शक्वर्यः ऋचः शक्नोतेः) 13. तै0 ब्रा0 2131812, 14. तैo ब्रा0 2 13 1814, 15. तै० ब्रा0 5 12 15 16, 16. नि0 3 14, 17. दै0 ब्रा03 12, 3, 18. नि0 7 13, 19. दै0 ब्रा 3 117, 20. नि0 7 13, 21. गो0 ब्रा० 1 11 17, 22. श० प० ब्रा0 1 14 12 12 12, 23. नि0 2:13 1 (ग) आरण्यकों में निर्वचन का स्वरूप ब्राह्मण ग्रन्थोंका वह भाग जो अरण्यपठित है तथा वानप्रस्थियोंके कर्मोंका विधान करता है, आरण्यकके नामसे अभिहित है । वानप्रस्थियों के लिए यह सर्वाधिक उपयोगी है क्योंकि यह उनके सारे वैदिक कृत्योंका विवरण प्रतिपादन करता है। आरण्यकोंमें भी निर्वचन उपलब्ध होते हैं। पदोंको स्पष्ट करनेके लिए उनकी निरुक्ति दी गयी है। ये निरुक्तियां ऐतिहासिक एवं वैज्ञानिक महत्त्व रखती हैं। कुछ निर्वचनोंका दिग्दर्शन अपेक्षित है :"मधुच्छन्दति इति मधुच्छन्दा" : (1.) छन्दति से निष्पन्न मधुच्छन्दामें मधु उपपद एवं छदिरावरणे धातुका योग है। यह प्रत्यक्षवृत्याश्रित निर्वचन है तथा कार्मिक आधार रखता है। मधुच्छन्दा एक ऋषि विशेषका नाम है । २७ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy