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________________ यास्क ने इसका मात्र अर्थ स्पष्ट किया है। भाषा विज्ञान एवं निर्वचन प्रक्रिया के अनुसार इसे संगत नहीं माना जायगा। कृ धातु से इन् प्रत्यय कर ऋ लोप कर कि: शब्द बनाया जा सकता है। (२०३) उल्वम् :- यह गर्भावरण जरायुका वाचक है। निरुक्तके अनुसार उल्वमूर्णोतेर्तृणोते१ि४४ अर्थात् यह उर्ण आच्छादने धातुके योगसे निष्पन्न होता है या वृञ् आच्छादने धातुके योगसे बनता है। उर्गुञ्-उल्वम्। वृञ् से उल्वम् में व का उ सम्प्रसारण से हुआ है तथा र का ल हो गया है। क्योंकि यह गर्भ को आच्छादित किए रखता है। दोनों निर्वचनों का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार संगत है भाषा विज्ञानके अनुसार इन्हें संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार उच् समवाये धातुसे वन् प्रत्यय कर उल्वम् शब्द बनाया जा सकता है (चस्य ल:)१५५ (२०४) ऋबीसम् :- इसका अर्थ होता है पृथ्वी। निरुक्तके अनुसार १. ऋवीसम् अपगतभासम्। अर्थात् जिसका प्रकाश समाप्त हो चुका है। २. अपहृत भासम्। अर्थात् जिसका प्रकाश अपहृत है। ३- अन्तर्हित भासं वा अर्थात् अन्तर्हित प्रकाश वाला। ४- गतभासम् वा१४४ अर्थात् जिसमें प्रकाश समाप्त है। प्रथम निर्वचन में ऋ+ भा धातुका , द्वितीयमें हृ + भा का , तृतीय में अन्तः+ धान भा का , चतुर्थ में ऋ+ भा का योग है। प्रथम निर्वचन ऋ+ भासम्= ऋबीसम् ध्वन्यात्मक दृष्टि से अधिक संगत है। शेष निर्वचनों में ध्वन्यात्मक शैथिल्य है। अर्थात्मक दृष्टिकोण से सभी निर्वचन उपयुक्त हैं। व्याकरणके अनुसार · ऋ वर्जने धातु + भास+ अच् प्रत्यय कर ऋवीसम् शब्द बनाया जा सकता है। (२०५) गण :- यह समूहका वाचक है। निरुक्तके अनुसार-गणो गणनात१४४ अर्थात् यह शब्द गण संख्याने धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि इसकी गिनती है या इसका गणन होता है।१५६ गुण शब्द भी इसी गण संख्याने धातु के योग से निष्पन्न होता है। गुणश्च गुणकी भी गणना होती है अतः गण धातु से बना है।१४४ यह निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधारसे युक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार गण संख्याने धातुसे अच् प्रत्यय कर गण: शब्द बनाया जा सकता है। • : सन्दर्भ संकेत :१. नि. ६।१, २. नि.दु.वृ. ६।१, ३. इगुपघात् कित्- ४।१२०, ४. पचाद्यच् ३९०:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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