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________________ (१७६) चाकन् :- इसका अर्थ होता है देखता हुआ, चाहता हुआ। निरुक्तके अनुसार-चाकन् तायन्निति वा कामयमान इतिवा१२५ अर्थात् यह शब्द इच्छार्थक चक धातुसे निष्पन्न होता है- चक् + शतृ = चकन्-चाकन्। चाकन् के क का य करके चायन् बनाया जाता है। यह चाकन् का पर्याय है। इस निर्वचन का ध्वन्यात्मक आधार उपयुक्त नहीं है। इस निर्वचन में धातु स्पष्ट नहीं है। मात्र इसका अर्थात्मक महत्त्व है। निर्वचन प्रक्रिया या भाषा विज्ञानके अनुसार इसे पूर्ण निर्वचन नहीं माना जायगा।। (१७७) वाय :- यह पक्षी शावकका वाचक है। निरुक्तके अनुसार-वायो वे पुत्र:१२५ अर्थात् वाय: वि के पुत्र को कहा जाता है इसके अनुसार वि+ अण से वाय: शब्द निष्पन्न होता है। यास्क इस अवसर पर आचार्य शाकल्यका मत उद्धृत करते हैं- वेति च य इति च चकार शाकल्य:१२५ अर्थात् शाकल्य ने वा एवं य: को अलगअलग किया है। यास्कके अनुसार यह उपयुक्त नहीं है। यास्कका कहना है-उदात्तं त्वेवमाख्यातमभविष्यत्। असुसमाप्तश्चार्थ:१२५ अर्थात् वायः को अलग-अलग पदच्छेद करने पर (ऋ.१०।२९।१,अथर्व. २०७।७६।१)१४१ आख्यात पद उदात्त हो जायगा तथा उदात्त करने पर मन्त्रार्थ की संगति उपयुक्त नहीं होगी। निर्वचनके अनुसार यास्कका वेः पुत्रः वाय: सर्वथा संगत है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार भी इसे उपयुक्त माना जायगा। आचार्य शाकल्य पदपाठकार हैं। इन्होंने वायः का पदविच्छेद उपयुक्त नहीं किया है या वा यः करना अशुद्ध पद विच्छेद है। (१७८) स्थर्यति :- इसका अर्थ होता है. रथ की कामना करने वाला। निरुक्तके अनुसार-स्थर्यति इति सिद्धस्तत्प्रेप्सुः रथं कामयत इति वा१२५ अर्थात् स्थर्यति का अर्थ है- स्थ चाहने वाला या रथ की कामना करने वाला। इसके अनुसार स्थ+ हथ् प्रेप्सा कर्मा धातुके योगसे यह शब्द निष्पन्न होता है- स्थं हर्यतीति स्थर्यति।१४२ रथ की कामना करने वाला के अर्थमें -रथमात्मन: कामयते इति१४३ स्थीयति- स्थर्यति माना जायगा। यह निर्वचन पूर्ण स्पष्ट नहीं है। इस निर्वचन का अर्थात्मक महत्व है। (१७९) असक्राम् :- इसका अर्थ होता है असंक्रमणीय। निरुक्तके अनुसार असक्राम् असंक्रमणीम्१२५ अर्थात् संक्रमण नहीं करने वाला असक्राम कहलाता है। यास्कने इसका मात्र अर्थ निर्देश किया है। निर्वचन प्रक्रिया एवं भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त नहीं माना जायगा। इसका मात्र अर्थात्मक महत्त्व है। व्याकरणके अनुसार ३८३:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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