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________________ अनर्वन् = अनर्वा। इस निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। (१५८) मन्द्रजिह्वम् :- इसका अर्थ होता है- मधुरभाषी या मधुर जिह्वा वाला। निरुक्तमें इसे -मन्द्रजिर्जा मन्दन जिहं मोदमानजिहमिति वा।१२५ अर्थात् मन्द्र जिह्वा शब्द मन्दनजिह से बना है या मोदमान जिह से। प्रथम निर्वचनके अनुसार मद्से मन्द् शब्द माना गया है। मद् धातु हर्ष और स्तुति दोनों अर्थों में प्रयुक्त है। इस आधार पर इसका अर्थ होगा जिसकी जिह्वा प्रसन्न रहती हो या स्तुति करने वाली हो। द्वितीय निर्वचनके अनुसार मुद् धातुका योग है जिसका अर्थ होता है आनन्दित होना। प्रथम निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिसे उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा! द्वितीय निर्वचन में स्वरगत औदासिन्य है। व्याकरण के अनुसार मद्+रक् कर मन्द्र शब्द बनाया जा सकता है। यह सामासिक शब्द है। मन्दना जिह्वा यस्य तम् मन्द्रजिह्म। (१५९) असामि :- इसका अर्थ होता है- अनन्त। निरुक्त्तके अनुसार-असामि सामि प्रतिषिद्धम१२५ अर्थात् यह शब्द सामिका विपरीत है। इसके अनुसार इसमें न- असामि है। सामि अन्तका वाचक है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार संगत है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। (१६०) सामि :- इसका अर्थ होता है. अन्त करना, आधा। निरुक्तके अनुसार- सामि स्यते:१२५ अर्थात् यह शब्द षोऽन्तकर्मणि धातुके योगसे निष्पन्न होता है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। किंचित् ध्वन्यन्तर के साथ भारोपीय माषा की लैटिन भाषा में Semi शब्द प्राप्त होता है जिसका अर्थ है आधा। संस्कृत के सामि भी अर्धका ही वाचक है। लौकिक संस्कृतमें इसका प्रयोग प्रायः नहीं देखा जाता। (१६१) गल्दया:- यह धमनीका वाचक है। निरुक्तके अनुसार-गल्द धमनयो भवन्ति। गलनमासु धीयते१२५ अर्थात् इसमें गलन रस (अन्नादि के रस) स्खे जाते हैं।अत: धमनीको गल्दा कहा जाता है।धमनियोंसे रक्तप्रवाहित होता है।इसके अनुसार इस शब्दमें गल्+ धा =गल्धा -गल्दा तृतीया एकवचन में गल्दया है।इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है।गल् + धागल्धाके ध वर्णका द में परिवर्तन होकर गल्दा शब्द बना है। भाषा विज्ञान के अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा। डा. ३७८:व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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