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________________ अमतिः अमामयीमतिः । आत्ममयी५२ अर्थात् अमति: आत्ममयीका वाचक है। अमासे युक्त मतिको अमति कहते हैं। अमति शब्दमें अ + मति पद खण्ड है अ अमा या आत्मका वाचक है तथा उत्तर पद मतिः है। आत्म +मति: आत्ममतिः अमतिः, अमा + मतिः- अमामतिः अमति: । इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक आधार भ्रमात्मक है। अर्थात्मक आधार उपयुक्त है लौकिक संस्कृतमें इसका प्रयोग प्राय: नहीं देखा जाता है। (८६) श्रुष्टी :- यह शीघ्रका वाचक है। निरुक्तके अनुसार श्रुष्टी इति क्षिप्र नाम । आशु अष्टीति ५२ अर्थात् यह क्षिप्रका पर्याय है क्योंकि यह शीघ्र व्याप्त हो जाती है। इसके अनुसार इस शब्दमें अश् व्याप्तौ धातुका योग है आशु + अष्टी, आशु-शु +अश् +क्तिन्=श +अष्टा श्रुष्टी । इस निवर्चनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा । व्याकरणके अनुसार शु + अश् + क्तिन् कर श्रुष्टी शब्द बनाया जा सकता है। (८७) नासत्यौ :- यह अश्विनीयुगलका वाचक है। निरुक्तमें विभिन्न आचार्योंके निर्वचनों का उल्लेख हुआ है । १- सत्यावेव नासत्यावित्यौर्णवाभ: ५२ अर्थात् आचार्य और्णवाभ नासत्यका अर्थ सत्य मानते हैं। इनके अनुसार नासत्यौ शब्दमें न + असत्यौ का योग है। २- सत्यस्य प्रणेतारावित्याग्रायण: ५२ अर्थात् आचार्य आग्रायण नासत्यौका अर्थ करते हैं सत्यके प्रणेता। इनके अनुसार भी नासत्यौ में ना + सत्यका योग है। ना नेतारौका वाचक है। भाषा विज्ञानके अनुसार ना को ही उत्तर पदस्थ होना चाहिए था। ३- नासिका प्रभवो वभूवतुरितिवा५२ अर्थात् नासिकासे उत्पन्न होने वाले नासत्यौ कहलाये, यह निर्वचन ऐतिहासिकों का है।७२ इसके अनुसार इस शब्दमें नासा +त्य प्रत्यय है। और्णवाभका निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिसे उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। शेष निर्वाचनका अर्थात्मक महत्त्व है। डा. वुष्ट नासत्यौ में नस् साथ होनाका योग मानते हैं । ७३ व्याकरणके अनुसार इसे सामासिक शब्द माना जायगा नास्ति असत्यं ययो:- नासत्यौ । (८८) पुरन्धि :- इसका अर्थ होता है काफी बुद्धिमान्। निरुक्तके अनुसार पुरन्धिर्वहुधीः५२ अर्थात् इस शब्दमें दो पद खण्ड हैं पुरू बहुका वाचक है तथा उत्तर पदस्थ धी है जो बुद्धिका वाचक है। यह शब्द कई देवताओंके विशेषणके रूपमें प्रयुक्त हुआ है। देवताओंके कर्मके अनुसार यास्क इस शब्दका भी निर्वाचन प्रस्तुत करते है। १-मगःपुरस्तात्तस्यान्वादेश: इत्येकम् ५२ अर्थात् कुछ लोगोंके अनुसार यह शब्द पूर्वनिर्दिष्ट ३५९ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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