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________________ (९८) समम् :- यह परिग्रहार्थीय सर्व वाचक सर्वनाम है। इसके सम्बन्ध में यास्क का कहना है-सममिति परिग्रहार्थीय सर्वनामानुदात्तम् १०९ अर्थात् समम् शब्द सर्व अर्थ द्योतित करने वाला सर्वनाम है जो अनुदात्त है। यास्क पुनः उपस्थापित करते हैं तत्कथमनुदात्त प्रकृतिनाम स्याद् दृष्टव्ययं तु भवति अर्थात् अनुदात्त प्रकृति वाला सम् शब्द नाम कैसे हो सकता है। फिट् सूत्र फिषोऽन्त उदात्त: १२६ इस सूत्र से नाम अन्तोदात्त होते हैं अनुदात्त नहीं होते। साथ ही साथ सम शब्द तो दृष्ट व्यय है। यह अव्यय नहीं है। इसके विभिन्न रूप (विकार) देखे जाते हैं। ज्ञातव्य है अव्यय अनुदात्त होते हैं- चादयोऽनुदाता : ११२७ समम् शब्द के दृष्टव्यय के उदाहरण में यास्क समस्मिन् १२८ समस्मात्१२९ समे१३० आदि पदों का उपस्थापन भी कहते हैं। समम् शब्द का निर्वचन प्रस्तुत नहीं किया गया है। इसका मात्र व्याख्यान प्रस्तुत हुआ है। व्याकरणके अनुसार सम् वैक्लब्ये धातुसे अम् प्रत्यय कर समम् शब्द बनाया जा सकता है। लौकिक संस्कृतमें समम् शब्द अव्यय है । १३१ (९९) ऊर्मि :- इसका अर्थ होता है जलतरंग। निरुक्तके अनुसार ऊर्मिस्रुर्गोते :१०९ अर्थात् यह शब्द ऊर्णुञ् आच्छादने धातुके योगसे निष्पन्न होता है। क्योंकि वह जलस्थ सभी वस्तुओं को आच्छादित कर लेती है। इसका अर्थात्मक एवं ध्वन्यात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा । व्याकरणके अनुसार ऋ गतौ धातुसे मि: प्रत्यय कर ऊर्मिः शब्द बनाया जा सकता है । १३२ (१००) नौ :- इसका अर्थ होता है नाव । निरुक्तके अनुसार १-नौ: प्रणोतव्या भवति१०९ अर्थात् यह प्रेरितकी जाती है, चलाई जाती है। इसके अनुसार इस शब्द में द् प्रेरणे धातु का योग है - णुद्-नौ । २ - नमतेर्वा १०९ अर्थात् यह शब्द नम् प्रह्वे धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि नाव चलते समय इतस्ततः झुक जाती है । १३३ दोनों निर्वचनोंका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार णुद् + डौः प्रत्यय कर नौ: शब्द बनाया जाता है। १३४ (१०१) पिपर्ति :- इसका अर्थ होता है कामनाओं को पूर्ण करता है या तृप्त करता है।१३५ निरुक्तके अनुसार पृणाति : १०९ अर्थात् यह शब्द पृ पूरणे धातुके योगसे निष्पन्न होता है। इसके अनुसार इस शब्दमें प्रीञ् तर्पणे धातुका योग है। यह क्रिया पद है।पृ धातुसे इसका निर्वचन माननेपर ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोण ३२२ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य बास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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