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________________ अतः उरण कहलाता है। इस शब्दमें उर्णा + मतुवर्थीय अच् प्रत्ययका योग है। इस निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जायगा । व्याकरणके अनुसार ऋ गतौ + क्युः प्रत्यय कर उरण : शब्द बनाया जा सकता है | ११६ (९२) ऊर्णा :- इसका अर्थ होता है- ऊन। निरुक्तके अनुसार १-ऊर्णा पुनः वृणोते : १०९ अर्थात् यह शब्द वृञ् आच्छादने धातु के योग से निष्पन्न होता है क्योंकि इससे आच्छादन किया जाता है। शीत से रक्षा के लिए शरीर को ढंका जाता है। २- ऊर्णोतेर्वा१०९ अर्थात् इस शब्द में ऊर्णुञ् आच्छादने धातुका योग है क्योंकि इससे शरीर का आच्छादन किया जाता है। दोनों निर्वचनों के ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त हैं । द्वितीय निर्वचन को भाषा विज्ञानके अनुसार भी सर्वथा संगत माना जायगा। व्याकरण के अनुसार ऊर्णुञ् आच्छादने से उः प्रत्यय कर ऊर्णा शब्द बनाया जा सकता है । ११७ भारोपीय परिवार की अंग्रेजी भाषा में भी यह शब्द किंचित् ध्वन्यन्तरके साथ प्राप्त होता है-सं. ऊर्णा- अं. Wollen (र एवं ल का अभेद) (९३) जोषवाकम् :- इसका अर्थ होता है अविज्ञात। निरुक्तके अनुसार जोषवाकमित्यविज्ञात नामधेयम् । नोषयितव्यं भवति । १०९ अर्थात् वह अविज्ञापनीय होता है। इसके अनुसार इस शब्द में जुष् परितर्कणे धातुका योग है। जुष्-जोष + वच्-वाक = जोषवाकम्। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा । व्याकरणके अनुसार जुष् +वञ् जोषम् । जोष + वाक् = जोषवाकम् शब्द बनाया जा सकता है। (९४) कृत्ति: :- यह यश एवं अन्न का वाचक है। निरुक्तके अनुसार- कृत्ति : कृन्ततेर्यशोवा अन्नं वा१०९ अर्थात् यहं शब्द कृत् छेदने धातुके योग से निष्पन्न होता है क्योंकि यश शत्रुओं के मर्म हृदय को काटता है, विदीर्ण करता है या अनेक अनर्थों बुराइयों को समाप्त करता है । ११८ अन्न दुरूपयुक्त होने पर आयुको क्षीण करता है आयु को घटाता है या यह भूख मिटाता है। कृत्ति का अर्थ चिथड़ा (कंथा भी होता हैइयमपि इतरा कृत्तिरेतस्मादेव सूत्रमयी उपमार्थे वा १०९ अर्थात् यह कन्या वस्त्र वाचक कृत्ति भी इसी कृत् धातु से निष्पन्न होता है जो सूत्रमयी और उपमार्थक है। कपड़े सूत्र से ही निर्मितहोते हैं। इसलिए कन्था (वस्त्र, चादर) कृत्ति कहलाता है । उपमार्थक होने के कारण चर्मभी कृत्ति कहलाता है।कृती छदने धातुका अर्थ साम्य होनेके कारण चर्म कृत्ति ३२० : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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