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________________ अर्थ होगा जलपरी। (६६) द्रप्स :- इसका अर्थ होता है जल या वीर्य। निरुक्तके अनुसार द्रप्सः संभृतः प्सानीयो भवति८५ अर्थात् यह इक्कठा किया हुआ होता है। प्सानीयका अर्थ होता है भक्षणीय। यह वीर्य स्त्री योनिका भक्षणीय होता है। इसके अनुसार इसमें भृ भरणे प्सा भक्षणे धातुओंका योग है। यह भरणीय या भक्षणीय होता है। अतः दो धातुओंका योग दिखलाया गया - भृ + प्सा = द्रप्सः९२ (वर्ण परिवर्तन) ध्वन्यात्मक दृष्टिसे यह निर्वचन किंचित् शिथिल है। इसका अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। लौकिक संस्कृतमें द्रप्सका अर्थ शिथिल दधि होता है। इसे व्याकरणके अनुसार दृप् हर्षादौ धातुसे सः प्रत्यय कर द्रप्सः माना जा सकता है। (६७) पुष्करम् :- यह अनेकार्थक है। निरुक्तमें अन्तरिक्ष, उदक, कमल आदिके अर्थमें इसका निर्वचन हुआ है। अन्तरिक्षके अर्थमें - पुष्करमन्तरिक्षं पोषति भूतानि८५ अर्थात् वह प्राणियोंका पोषण करता है अतः अन्तरिक्षको पुष्कर कहते है। इसके अनुसार इसमें पुष् +कृ धातुओंका योग है। पुष +कृ - पुष् +कर् - पुष्कर। उदकके अर्थमें - पुष्करमुदकं पूजाकर पूजयितव्यम् वा अर्थात् यह पूजा सम्पादित करने वाला तथा प्राणियोंके द्वारा पूज्य है। कार्य सम्पादनमें जलका अत्यधिक महत्त्व है। जलमें देवताका वास (वरूण) रहनेके कारण धार्मिक दृष्टिसे भी जल पूज्य है इसके अनुसार इस शब्दमें पूज् + कृ धातुका योग है- पूज् - कृ - पूज कर पुष्कर। कमलके अर्थमें इदमपीतरत् पुष्करमेतस्मादेव पुष्करं वपुष्करं वा८५ अर्थात् कमल वाचक पुष्कर शब्द भी इसीसे निष्पन्न होगा क्योंकि वह पूजाके लिए उपयुक्त होता है एवं पूज्य तथा शरीरकी शोभाको बढ़ाने वाला होता है। कमलपुष्पसे व्यक्ति अपने शरीरको सजाता है या अलंकृत करता है अतः वपुष्कर ही पुष्कर बन गया।९४ वपुः +कृ धातुका योग इस शब्दमें स्पष्ट है- वपुः + कृ - कर · वपुष्कर - पुष्करम् - वपुःके आद्यक्षरका लोप इसमें पाया जाता है। यास्कका अन्तरिक्ष वाचक निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिसे उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। उदकके अर्थमें भी इसी निर्वचनको माना जा सकता है क्योंकि जलसे भी प्राणियों का पोषण होता है। शेष निर्वचन अर्थात्मक महत्व रखते हैं। वपुष्करसे पुष्कर शब्द में आदि व्यंजन लोप पाया जाता है। व्याकरपा के अनुसार पुष् पुष्टौ + करन् प्रत्यय कर पुष्कर शब्द बनाया जा सकता है।५ पुष्कर शब्दका प्रयोग लौकिक संस्कृतमें इन अर्थोके अतिरिक्त करिकराग्र, वाद्य, भाण्ड, नख,खड्ग आदि अर्थोमें ३१२ व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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