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________________ (५५) आयूष :- यह स्तोमका वाचक है। निरुक्तके अनुसार - आयूषः स्तोम आघोष:५८ अर्थात् यह उच्चस्वरसे गाया जाता है। अतः स्तोमको आयूष कहा जाता है। इसके अनुसार आघोष शब्दही परिवर्तित होकर आंगूषहो गया है - आघोष - आंघूष। इस आंगूष शब्दमें आ + घुष् विशब्दने धातुका योग है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। व्याकरणके अनुसार अगि +ऊपच् +स्वार्थे अण् प्रत्यय कर आंगूषः शब्द बनाया जा सकता है। (५६) आपातमन्यु :- इसका अर्थ होता है तेजयुक्त या क्रोधयुक्त। निरुक्तके अनुसार - आपातमन्युः आपातितमन्यु:५८ अर्थात् जिसका क्रोध उत्पन्न हो चुका है या जिसका तेज प्रकटहो चुका है। इसके अनुसार आपातमन्यः शब्दमें दो पद खण्ड हे • आपात आपातितका वाचक है तथा मन्युः दीप्तिः या क्रोधका वाचक है। यह सामासिक शब्द है इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। (५७) तृप्रहारी :- इसका अर्थ होता है शीध्र प्रहार करने वाला। निरुक्तके अनुसार तृप्रहारी क्षिप्रहारी , तृप्रप्रहारी५८ अर्थात् जो शीघ्र आक्रमण करे या शीघ्र प्रहार करे। तृ प्रहारी शब्दमें दो खण्ड है - प्रथम खण्ड तृ - क्षिप्र या सृप्रका वाचक है। द्वितीखण्ड प्रहारी है। दोनों खण्डोंके योगसे तृप्रहारी शब्द बना है। यह सामासिक शब्द है तथा सोम एवं इन्द्रके विशेषणके रूपमें प्रयुक्त हुआ है। सोमो वा इन्द्रोवा५८ सृप या क्षिप्रसे तृ मान लेना ध्वन्यात्मक शौथिल्य होगा। इस निर्वचनका अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत नहीं माना जायगा। लौकिक संस्कृतमें इसका प्रयोग प्रायः नहीं देखा जाता है। (५८) धुनि:- इसका अर्थ होता है कंपाने वाला। निरुक्तके अनुसार - धुनिः धुनोते:५८ अर्थात् यह शब्द धू कम्पने धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि यह कंपा देने वाला होता है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जायगा। लौकिक संस्कृतमें धुनी शब्द प्राप्त होता है जो नदी वाचक है। व्याकरणके अनुसार धू कम्पने धातुसे क्विप्नु। डीप प्रत्यय कर धुनी शब्द बनाया जा सकता है क्योंकि नदी मी वेतसोंको कंपा देती है। (५९) शिमी :- यह कर्मका वाचक है। निरुक्तके अनुसार - सिमीति कर्म नाम। १. शम्यतेर्वा५८ अर्थात् यह शब्द शम् उपशमे धातुके योगसे निष्पन्न होता है क्योंकि ३०८ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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