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________________ शब्दके प्रत्येक अंशमें आधार खोजते हैं। ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दष्टिकोणसे यह निर्वचन उपयुक्त है। उपर्युक्त निर्वचनोंसे पता चलता है कि अमत्र भोजन करनेकी थालीका वाचक है तथा यास्कके समयमें भी लोग भोजनके लिए इस प्रकारकी थालीका प्रयोग करते थे। लौकिक संस्कृतमें भी इसका प्रयोग पात्र के लिए होता है। व्याकरणके अनुसार अम् गत्यादिषु धातुसे अत्रन् प्रत्यय कर अमत्रम् शब्द बनाया जा सकता है।१० यास्क षष्ठ अध्यायमें अमत्रका अर्थ मात्रा रहित करते हैं-अमात्रो महान् भवति अभ्यमितो वा११ अर्थात् अमत्र महान् होता है, शत्रुओं से अनभिहिंसित होता है। इसके अनुसार इस शब्दमें अ (न) + मा + अत्रन् प्रत्ययका योगहै। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे भी उपयुक्त माना जाएगा। (९) अमा :- इसका अर्थ होता है अपरिमितानिरुक्तके अनुसार-अमा पुनरनिर्मितं भवति१ अर्थात् जो मापा न जा सके। इसके अनुसार अमा शब्दमें नञ्-अ+ मा माने धातुका योग है। इस निर्वचनसे स्पष्ट होता है कि यास्कके समयमें अमा अनिर्मित वस्तु होगी जो खाद्य भी हो सकती है। इसका अर्थ अपरिमित मानने में लगता है यास्क निर्मित या बनी हुई वस्तुओंको परिमित मानते हैं क्योंकि एक परिमाणमें उसका निर्माण हो चुका रहता है। अनिर्मित पुनः असीमित होता है। अतः अमा शब्दमें अ नार्थ है तथा मा माने धातु। इस आधार पर यास्कका यह निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे उपयुक्त है। अमा शब्दका प्रयोग लौकिक संस्कृतमें साथ एवं निकटके लिए होता है।१३ व्याकरणके अनुसार अ+ मा माने धातुसे क्विप् प्रत्यय कर अमा शब्द बनाया जा सकता है।१४ (१०) पात्रम् :- इसका अर्थ होता है वर्तन। निरुक्तके अनुसार -पात्रं पानात् अर्थात् जिससे पान किया जाय उसे पात्र कहते हैं। इस निर्वचन के अनुसार पात्रम् शब्दमें पा पाने धातुका योम है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जाएगा। इस निर्वचनसे स्पष्ट होता है कि यास्कके समयमै पीनेके बर्तनको ही पात्रं कहा जाता था जबकि आज कल कोई भी बर्तन चाहे उसमें खाया जाय या पान किया जाए या इसके अतिरिक्त भी कोई दूसरे उपयोगमें लाया जाए, पात्र कहलाता है। भाषा विज्ञान के अनुसार इसे अर्थ विस्तार कहा जाएगा। व्याकरणके अनुसार पा पाने धातुसे ष्ट्रन५ प्रत्यय कर पात्रम् शब्द बनाया जा सकता है। (११) असश्चन्ती :- इसका अर्थ होता है अलग-अलग रहती हुई या अनुपक्षीण। २९३ : त्यत्पत्ति विज्ञान और भाचा 'म्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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