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अनुसार अरः शब्दमें ऋ गतौ धातुका योग है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार भी इसे संगत माना जाएगा। व्याकरणकेअनुसार ऋ गतौ धातुसे अच्२०१ प्रत्यय कर अर: शब्द बनायाजा सकता है।
(१३४) षट् :- यह संख्या वाचक शब्द है। इसका अर्थ होता है छः । निरुक्तके अनुसार षट् सहते : १४४ अर्थात् यह पंच संख्याको पराभूत करके स्थित है । २०३ इसके अनुसार षट् शब्दमें सह मर्षणे धातुका योग है। इस निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवँ अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। किंचित् ध्वन्यन्तर के साथ भारोपीय परिवार की अन्य भाषाओं में भी यह सुरक्षित है-संस्कृत षट्, अवे. श्वश्, ग्रीक Hex, लैटिन Sex, अंग्रेजी Six.
(१३५) मास :- इसका अर्थ होता है- महीना । निरुक्तके अनुसार मासा : मानात१४४ अर्थात् इससे सम्वत्सरका माप होता है। वारह मासका एक सम्वत्सर होता है। इसके अनुसार इस शब्द में मा माने धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जाएगा। व्याकरणके अनुसार मसि परिमाणे धातुसे धञ् प्रत्यय कर मासः शब्द बनाया जा सकता है। २०४
(१३६) प्रधि :- इसका अर्थ होता है-हाल या परिधि । निरुक्तके अनुसार-प्रधिः प्रहितो भवति१४४ अर्थात् यह चक्रमें प्रहितं (निहित ) होता है। इसके अनुसार इस शब्दमें प्र + धा धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जाएगा। व्याकरणके अनुसार प्र + डुधाञ् धारणे + कि: प्रत्यय कर प्रधिः शब्द बनाया जा सकता है ।२०५
-: संदर्भ संकेत :
१.अथ यानि अनेकार्थानि एक शब्दानि तानि अतोऽनुक्रमिष्यामः । अनवगतसंस्कारांश्च निगमान्। तत् ऐकपदिकमित्याचक्षते - नि. ४ १, २ . ग्रहोर्मश्छन्दसि - (अष्टा ३।१।८४का) वार्तिक, ३ . नि . ४ १, ४ . अत्र अन्तेर्जहातेश्च सन्देह इतिमाष्यकारेणा वधृतं जघानेत्यर्थ: नि.दु.वृ. ४19, ५ . मर्यो मरणधर्मा-नि. दु.वृ. ४१, ६. वाचकमुचित्सम स्मात् घहस्मत्व ईम्मर्याअरेस्विन्निपाताश्चेत् शु . य प्रा. २।१६, ७. मि. ३३, ८. मर्यादा सीमनि स्थितौ मे. दि.- ७७१३७, ९. शब्दकल्पद्रुम भा: ३ पृ.६४३, १०. 'यस्मात् इयं निधीयते नीचैर्धार्यते पक्षिग्रहणार्थम् नि .दु.वृ. ४१, ११. यो वालमय: स्नायुमयो वा पाशः समूहः पक्षिग्रहणार्थ: स पाश्येति उच्यते नि. दु.वृ. ४।१, १२.
२८४ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क