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________________ विज्ञानकी दृष्टि से इसे संगत माना जाएगा। डा. वर्मा भी इस निर्वचन को भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से उपयुक्त मानते हैं। इनके अनुसार भी इस निर्वचन में ध्वन्यात्मकता एवं अर्थात्मकता का सर्वथा निर्वाह हुआ है।१६२ व्याकरणके अनुसार यु मिश्रणे धातु से थ प्रत्यय१६३ कर यूथम् शब्द बनाया जा सकता है। (१०४) जरते :- इसका अर्थ होता है-स्तुति करता है या उपदेश करता है. जरते गृणानि४४ अर्थात् यह शब्द गृ स्तुतौ धातुके योगसे बना है। गृ धातुसे निष्पन्न गरिते शब्द ही जरिते हो गया है। इस निर्वचन में धातु स्थित ग का ज वर्ण में परिवर्तन हुआ है। अर्थात्मक दृष्टिकोण से यह पूर्ण उपयुक्त है। इसे जृ या जर् धातु से निष्पन्न मानना भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संगत होगा। ग ध्वनि का ज में परिवर्तन भी भाषा वैज्ञानिक महत्त्व रखता है। अभ्यास में तो अभी भी वह दृश्य होता है यथा गद् जगाद् गम् जगाम आदि। (१०५) मन्दी :- मन्दी का अर्थ होता है-स्तुत्य। मन्दते: स्तुतिकर्मण:१४४ अर्थात् यह शब्द स्तुत्यर्थक मन्द धातु से व्युत्पन्न है, क्योंकि वह स्तुतिके योग्य होता है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे इसे संगत माना जाएगा। प्रकृतमें मन्दी शब्द इन्द्रके लिए प्रयुक्त हुआ है जिसके अनुसार इन्द्र की स्तुति प्राधान्येन निर्दिष्ट है। इन्द्रकी स्तुति अन्य देवताओंकी अपेक्षा अधिक हुई है।१६४ व्याकरणके अनुसार मन्द +इन् = मन्दी शब्द बनाया जा सकता है। (१०६). अपीच्यम् :- इसका अर्थ होता है पृथक्। निरुक्त के अनुसार (१) अपीच्यमपचितम् अर्थात् पृथक् करके रखा हुआ। इसके अनुसार इस शब्द में अप् + चि चयने धातु का योग है। (२) अपगतम् अर्थात् पृथक् होकर गया हुआ। इसके अनुसार इस शब्द में अप + गम् धातुका योग है। (३) अपिहितम् अर्थात् पृथक् धारण किया हुआ। इसके अनुसार इस शब्दमें अपि + धा धातुका योग है। (४) अन्तर्निहितम्१४४ अर्थात् अन्दर रखा हुआ। इसके अनुसार इस शब्दमें अन्तः + धा धातुका योग है। सभी निर्वचनोंका अर्थात्मक महत्त्व है। ध्वन्यात्मक दृष्टिसे सभी निर्वचन अपूर्ण हैं। माषा विज्ञान के अनुसार कोई भी निर्वचन पूर्ण संगत नहीं है।. (१०७) दंसय:- इसका अर्थ होता है कर्म। निरुक्तके अनुसार दंसयः कर्माणि। दंसयन्ति एनानि१४४ अर्थात् इन कर्मोको लोग सम्पन्न करते हैं। इसके अनुसार इस शब्द में उपक्षयार्थक दंस् धातुका योग है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक २७६ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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