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________________ अनुसार शिश्नं श्नथते:" अर्थात् यह शब्द बधार्थक श्नय् धातुसे निष्पन्न होता है। श्नथ् धातु (वधार्थक) निघण्टु पठित है। इसके अनुसार अर्थ होगा जिससे क्या किया जाए। डा. हमण स्वरूप इसका अर्थ करते हैं जिससे भेदन किया जाए। क्य का अर्थ मेदन करना प्रकृत में संगत है। अर्थात्मक दृष्टिकोण से इस निर्वचन को उपयुक्त माना जाएगा। व्याकरणके अनुसार शश् प्लुतगती या शि निशाने धातु से नक् प्रत्यय कर शिश्नम् शब्द बनाया जा सकता है। माला विज्ञानकी दृष्टिसे इसमें व्यंजनगत औदासिन्य है। (८८) पिता :-पिताका अर्थ होता हैजनका निरुक्तके अनुसार पिता पाता का पालयिता वा पिताका अर्थ होता हैस्वा करने वाला या पालन करने वाला। इसके अनुसार पिता शब्दमें पा स्थणे या पाल् पालने (स्वाण) धातु का योग है। पिता पुत्र की स्था एवं पालन पोषण करता है। पा धातुसे पिला शब्द मानने पर ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक औचित्य संमत होता है। इसे मायादैज्ञानिक आधार पर भी उपयुक्त माना जाएगा। पाल् धातुसे पिता मानने, अर्थात्मक आधार ही मात्र संगत रहता है। व्याकरणके अनुसार पा धातुसे तृच प्रत्यय कर पितृ पिता शब्द बनास्था जा सकता है। मारोपीय परिवारका यह प्रसिद्ध शब्द है। किंचित् ध्वन्यस्ता के साथ इस परिवार की अन्य भाषाओं में भी इसका रुप सुरक्षित है सं. पित्रीक RE, लैटि. Pre, माथि.fida, अंग्रे. fatha. (८९) बन्चु :- यह बन्धनका बाचक है। निरुक्त के अनुसार बघुः सम्बन्धनात एक अर्थात् सम्बन्धित होने के कारण या एक साथ रहने के कारण बन्धु कहलाता है। इसके अनुसार बन्चुः शब्दमे बन्छ बन्धने धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। माषा वैज्ञानिक दृष्टिसे इसे संगत माना जाएगा। व्याकरणके अनुसार बन्छ बन्धने धातुसे उच्च प्रत्यय कर क्षुः शब्द बनाया जा सकता है। अंग्रेजी का Bindबन्ध का समानान्तर है। (९०) नामि :- यह नाल का वाचक है। सामान्यतया इसे उदर कूम मी कहा जा सकता है। निरुक्त के अनुसार नामि: सन्नहनात्। अर्थात् यह शब्द नह बन्छने धातु से निष्पन्न होता है। क्योंकि नामि: सेसन्नद्धमर्म हुआ करते हैं। अतः एक बन्धनमें होने के कारण नामि कहलाता है इस निर्वाचनका ध्वन्यात्मकएवंउत्मिक आधार उपयुक्त है। इसे माषा वैज्ञानिक दृष्टिसे मी संगत माना जाएगा। धातु स्थिन्ह का २७१: व्युत्पति विज्ञान और माच्यार्थी यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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