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________________ खच्छदः से कच्छ में ख + छद् धातुका योग है इनमें वर्ण परिवर्तन हुआ है नदीका किनारा वाचक कच्छ शब्दमें क + छद् धातु का योग है। यह ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे उपयुक्त है। प्रथम दो अर्थात्मक महत्त्व रखते हैं तथा ध्वन्यात्मक शैथिल्यसे युक्त हैं। व्याकरणके अनुसार क +छो छेदने+क : ११० प्रत्यय कर कच्छ: शब्द बनाया जा सकता है अथवा क्र+छ+ड़ से भी कच्छ शब्द बनायाजा सकता है. ( ७२ ) शिशीते :- इसका अर्थ होता है तीक्ष्ण रखता है। निरुक्तमें निश्यति९४ कह कर इसे स्पष्ट किया गया है। निश्यति का भी अर्थ होता है तीक्ष्ण करता है। यह निर्वचन अस्पष्ट है। इससे धातु आदिका पूर्ण पता नहीं चलता। यास्कने भी इसे अनवगत संस्कार के शब्दोंमें परिगणित किया है। भाषा विज्ञानके अनुसार भी इसे अपूर्ण माना जाएगा। (७३) रक्ष: :- रक्षः का अर्थ होता है-राक्षस । निरुक्तके अनुसार- रक्षः रक्षितव्यमस्मात् अर्थात् इससे अपनी रक्षा करनी पड़ती है। इसके अनुसार रक्षः शब्द में रक्ष् पालने धातुका योग है। (२) रहसि क्षणोतीति वा९४ अर्थात् वह एकान्तमें मारता है। इसके अनुसार इस शब्दमें रहस्1⁄2 क्षण् हिंसायाम् धातुका योग है। (३) रात्रौ नक्षत इतिवा अर्थात् वह रात्रि में गमन करता है । १११ इसके अनुसार रक्ष: शब्द में रात्रौ र + नक्ष् गतौ धातुका योग है। प्रथम निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोण से उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे उपयुक्त माना जाएगा। शेष दोनों निर्वचनोंका अर्थात्मक महत्त्व है। ध्वन्यात्मक दृष्टिकोण से अन्तिम दोनों अपूर्ण हैं। ब्राह्मण ग्रन्थों में भी रक्ष् धातुसे ही रक्ष: का निर्वचन प्राप्त होता है । ११२ व्याकरण के अनुसार रक्ष् पालने +असुन्११३ प्रत्यय कर रक्षः शब्द बनाया जा सकता है। लौकिक संस्कृतमें भी इसी अर्थ में ऋक्षः शब्दका प्रयोग देखा जाता है। (७४) सुतुक इसका अर्थ होता है अच्छी गति वाला । निरुक्तके अनुसारसुतुकः सुतुकन: ९४ सु सुष्ठु का वाचक है तथा लुक गमन का ।११४ यह अनवगत संस्कारका शब्द है। यह अस्पष्ट है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे अपूर्ण माना जाएगा। तुकका अर्थ सन्तान करने पर सुतुकः का अर्थ होगा अच्छी सन्तान वाला। प्रकृतमें सुतुक: अग्निके विशेषणके रूपमें प्रयुक्त है। (७५) सुप्रायणाः - इसका अर्थ होता है-सुन्दर गमन वाला । यास्कने इस अनवगत संस्कार वाले पदका मात्र अर्थ स्पष्ट किया है। इसका वे निर्वचन नहीं प्रस्तुत २६७ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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