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________________ नवनं दधाना अथात वह स्तुनि धारण करता है। इसक अन्सार नाका पालन +धा धारणे धातुका योग है नव + धा - नोधा। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। व्याकरण के अनुसार नु + धुट - अस् प्रत्यय कर नोधस् शब्द बनाया जा सकता है। (६१) अद्मसत् :- इसका अर्थ होता है- अन्नसाधिका स्त्री, अन्न प्राप्त करने वाली माता या स्त्री। निरुक्त के अनुसार - अद्यान्नं भवति - अद्यसादिनीति वा अद्य अन्नका वाचक है। जो अन्न पर बैठे उसे अद्म सादिनी कहा जाएगा। इसके अनुसार अद्यसत् शब्द में अद्य सद्धातुका योग है। अद्मसानिनीतिवा५ अर्थात् अन्न बांटने वाली, जो घर वालों को भोजन दें। गृह पत्नीके अर्थमें यह उपयुक्त है। इसके अनुसार इस शब्द में अद्म + सन् सम्भक्तौ धातुका योग है। अर्थात्मक आधार पर दोनों निर्वचचन उपयुक्त हैं। प्रथम निर्वचनका ध्वन्यात्मक आधार पूर्ण संगत है। प्रथम निर्वचनकी अर्थ संगतिमें अन्न प्राप्त कराने वाली स्त्रीका अर्थ विवक्षित है। दोनों ही निर्वचन गृहपत्नीका वाचक है। प्रथम निर्वचन भाषाविज्ञानकी दृष्टि से उपयुक्त माना जाएगा। (६२) इष्मिण :- इसका अर्थ होता है गतिशील। निरुक्तके अनुसार (१) ईषणिन:६५ अर्थात् जाने वाले। इसके अनुसार इस शब्दमें इष् गतौ धातुका योग है। (२) वैषणिन इतिवा अर्थात् चाहने वाले। इसके अनुसार इस शब्द में इष् इच्छायां धातुका योग है। (३) वार्षणिन इतिवा६५ अर्थात् देखने वाले। इसके अनुसार इस शब्द में दर्शनार्थक ऋष् धातुका योग है। इष्मिण: मरुतोंसे सम्बन्ध रखता है। मरुतोंका सम्बन्ध प्रमुख रूपसे आंधी तूफानसे है अतः ये वेगवान (ईषणिनः) हैं। ये वर्षा से पूर्व की स्थिति लानेमें प्रमुख रूपसे सहायक होते हैं अतः वर्षाकी इच्छासे युक्त (एषणिनः) है। तूफान लानेके विशिष्ट ज्ञानसे युक्त होनेके कारण अर्षणिनः भी हैं।८८ प्रथम दोनों निर्वचनोंका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। शेष निर्वचनोंका अर्थात्मक महत्व है। व्याकरणके अनुसार इष् +मक् =इष्म इष्मिणः शब्द बनाया जा सकता है। प्रथम दोनों निर्वचन भाषा विज्ञानके अनुसार संगत हैं। (६३) वाशी :- यह वाणी का वाचक है। निरुक्त के अनुसार वाशीतिवाङ् नाम वाश्यत इति सत्या:६५ अर्थात् इससे शब्द किया जाता है। इसके अनुसार वाशी शब्द में वाश् शब्दे धातुका योग है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। यास्क आगे चल कर इसी अध्याय में वाशीभिः का अर्थ वाग्भिः करते हैं जिस से भी स्पष्ट होता २६३ · व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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