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________________ निर्वचनोंमें ऐसे संज्ञापद आते हैं जिनके धातु एवं धात्वंशोंकी सूचना उसीमें उपलब्ध हो जाती है। फलतः धातु एवं संज्ञापदमें उत्पाद्य उत्पादक सम्बन्ध स्पष्ट हो जाता है । परोक्षवृत्तिके निर्वचन उन्हें कहेंगे जिनके प्रकृति प्रत्यय सहज स्पष्ट नहीं होते तथा जिनमें कई धातुओंकी संभावनाएं संलक्षित होती रहती हैं। प्रत्यय भी सहज रूपमें दृष्टिगोचर नहीं होते। परिणामस्वरूप इस प्रकारके शब्द विश्लेषणकी अपेक्षा रखते हैं। ऋग्वेद संहिताके निर्वचनोंका उपस्थापन द्रष्टव्य है - 1. वसोरिन्द्रं वसुपतिं गीर्भिर्गृणन्त ऋग्मियम् "2 इस मन्त्रांशमें गीः शब्दको स्पष्ट करनेके लिए गृणन्त क्रिया पद का प्रयोग किया गया है । अन्यत्र भी गीः पद गृणाति क्रिया पदसे स्पष्ट किया गया है । अतः गृणाति क्रिया पदका गीः से सम्बन्ध स्पष्ट हो जाता है। तदनुसार गीः पदमें गृ निगरणे धातुका योग माना जायेगा। यह प्रत्यक्षवृत्याश्रित है । 2. ऋचां त्वः पौषमास्ते पुपुष्वान् गायत्रं त्वो गायति शक्वरीषु ब्रह्मा त्वो वदति जात विद्यां यज्ञस्य मात्रां विमिमीत उत्वः।।*4 इस मन्त्रमें गायत्रं शब्दको स्पष्ट करनेके लिए गायति क्रियापदका उपस्थापन है । गायति क्रिया का सम्बन्ध उक्त संज्ञा पदसे स्पष्ट है । अन्यत्र भी गायत्री शब्द गायति क्रियापद द्वारा संकेतित है । इस शब्दमें स्तुत्यर्थक गै धातुका योग है । यह निर्वचन प्रत्यक्ष वृत्याश्रित है । निरुक्तमें भी गै धातुसे ही इसका निर्वचन किया गया है।' 3. यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ते ह नाकम्महिमानः सचन्तयत्रपूर्वे साध्याः सन्ति देवाः । । ' इस मन्त्रमें यज्ञ शब्दको स्पष्ट करनेके लिए अयजन्त क्रिया प्रयुक्त है । अयजन्त क्रिया यज् धातुसे निष्पन्न है । यह निर्वचन प्रत्यक्षवृत्याश्रित है । निरुक्तमें भी यज्ञ शब्दका निर्वचन यज् धातुसे ही किया गया है । व्याकरणके अनुसार भी यज् धातुसे नङ् प्रत्यय करने पर यज्ञ शब्द निष्पन्न होता है । ' "तन्तुं तनुष्व पूर्व्यं सुतसोमाय दाशुषे " 10 इस मन्त्रांशमें यज्ञार्थ प्रतिपादक तन्तु शब्दके लिए तन् विस्तारे धातु संकेतित है । तनुष्व क्रियापद तन्तुको स्पष्ट करता है। ऋग्वेदमें तन्तुका तन् १३ व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य ग्रास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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