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उदीर्णानीव ख्यायन्ते११८ अर्थात् ( किसी के द्वारा ) ऊपर ले जाये गये से दीखते हैं। यह निर्वचन दृश्यानुकरण पर आधारित है। यास्कका निर्वचन ध्वन्यात्मक दृष्टिसे पूर्ण संगत नहीं है। पाली भाषा में भी ऋक्ष शब्दकी उपलब्धि नक्षत्र के अर्थमें होती है। व्याकरणके अनुसार ऋषी गतौ +स: +क: १६४ प्रत्यय कर ऋक्ष : शब्द बनाया जा सकता है- (ऋषति गच्छति या ऋक्ष्णोति तमः इति ऋक्षम् )।
(११६) स्तृमि :- स्तृ का अर्थ नक्षत्र होता है। यह स्तृ शब्दके तृतीया बहुबचन का रूप है। इसका अर्थ होगा तारों से । स्तृ के निर्वचनमें यास्कका अभिमत है-स्तृभिस्तीर्णानीव ख्यायन्ते ११८ अर्थात् ये आकाश में फैलाये हुए से दीख पड़ते हैं। इसके अनुसार इस शब्द में स्तृ आस्तरणे धातुका योग है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जाएगा।
(११७) वम्री :- इसका अर्थ होता है- दीमक । निरुक्तके अनुसार-वम्रयो वमनात्११८ अर्थात् वम्री शब्द वम् उद्गीर्णे धातुसे निष्पन्न होता है। क्योंकि ये जल वमन करते रहते हैं जिससे मिट्टी आर्द्र हो जाती है १६५ या मिट्टी उगलती रहती है। इस निर्वचन का ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। इसे आख्यातज सिद्धान्त पर निष्पन्न माना जा सकता है। भाषा विज्ञानके अनुसार यह संगत है।
(११८) सीमिका :- सीमिकाका अर्थ होता है- दीमक । निरुक्तके अनुसारसीमिका स्यमनात्११८ अर्थात् सीमिका शब्द गत्यर्थक स्यम् धातुसे बनता है क्योंकि वह लगातार गमन करती रहती है । १६६ स्यम्- सीम् + किकन् = सीमिकन् सीमिका । ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे यह निर्वचन उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जाएगा। व्याकरणके अनुसार स्यम् शब्दे धातुसे किकन् १६७ प्रत्यय कर सीमिका शब्द बनाया जाता है।
(११९) उपजिह्निका : उपजिह्निका का अर्थ होता है- दीमक । निरुक्तके अनुसार- उपजिह्निका उपजिघ्रय : ११८ उपजिघ्रन्ति अर्थात् इसमें घ्राण शक्ति अधिक होती है। १६८ इसके अनुसार उपजिह्विका शब्द में उप घ्रा धातु का योग है। उप + घा = उपजिघ्री - उपजिह्निवी +कन् +टाप् = उपजिह्विका । ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे यह निर्वचन उपयुक्त है। भाषा विज्ञानके अनुसार इसे संगत माना जाएगा। व्याकरणके अनुसार उपगता जिह्वा यस्याः सा उपजिह्वा +कन् = उपजिह्विकन् +टाप् = उपजिह्विका शब्द बनाया जा सकता है।
२३५: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क