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________________ अनुसार इस शब्दमें चल् कम्पने, चर् गतौ या चल् विलसने धातुका योग है। इसका अर्थात्मक आधार उपयुक्त है। ध्वत्यात्मक आधार इसका पूर्ण उपयुक्त नहीं है। भारोपीय परिवारकी अन्य भाषाओंमें इसे किंचित् ध्वन्यन्तरके साथ देखा जा सकता है- संस्कृत चतुर अवे-चथु, ग्रीक- Tettares, लैटिन- Quattuor , अंग्रेजी-Four. (३३) अष्टौ :- यह संख्या वाचक शब्द है। इसका अर्थ होता है-आठ। निरुक्तके अनुसार- अष्टावश्नोते:३५ अर्थात् यह संख्याओंमें व्याप्त रहती है। इसके अनुसार इस शब्दमें अशु व्याप्तौ धातुका योग है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे यह उपयुक्त है। भारोपीय परिवारकी अन्य भाषाओंमें भी किंचित् ध्वन्यन्तरके साथ इसे देखा जाता है- संस्कृत-अष्टन्, अवे. अश्तन् , ग्रीक-Okto, लैटिन- Octo, अंग्रेजीEight. व्याकरणके अनुसार इसे अस् + तन= अष्टन् बनाया जा सकता है। (३४) नव :- यह नौ संख्या का वाधक है। निरुक्तके अनुसार (१) नव न वननीयाः अर्थात् यह सेवन के योग्य नहीं है। इसके अनुसार इस शब्दमें न + वन् धातुका योग है- न+वन्- नवन्। (२) न अवाप्ता वा३५ अर्थात् वह दस संख्या तक प्राप्त नहीं है। इसके अनुसार नव शब्द में न + आप धातुका योग है। प्रथम निर्वचन से स्पष्ट होता है कि यास्कके समय नव संख्या अशुभका द्योतक थी। द्वितीय निर्वचन का अर्थात्मक आधार उपयुक्त है लेकिन यह ध्वन्यात्मक महत्त्वसे पूर्ण नहीं है। प्रथम निर्वचन ध्वन्यात्मक महत्त्व रखता है। भारोपीय परिवारकी अन्य भाषाओंमें भी किंचित् ध्वन्यन्तरके साथ यह शब्द प्राप्त होता है-संस्कृत-नवन्, अवेस्ता- नवन्, ग्रीक Enuea, लैटिन- Noven, अंग्रेजी-Nine .. (३५) दश :- यह दश संख्याकां. वाचक है। निरुक्तके अनुसार इसके दो निर्वचन प्राप्त होते हैं: (१) दश दस्ता अर्थात् यह क्षीण होती है। इसके अनुसार इस शब्द में दसु उपक्षये धात का. योग है। (२) दृष्टार्था वा३५ इसका प्रयोजन अगली संख्या में देखा जाता है। इसके अनुसार इसमें दश् धातुका योग है। प्रथम निर्वचन ध्वन्यात्मक दृष्टि से उपयुक्त है। अर्थात्मक आधार पर यह कहा जा सकता है कि अगली संख्या की अपेक्षा यह क्षीण संख्या है, तो इसका अर्थात्मक आधार भी संगत है। द्वितीय निर्वचन मात्र अर्थात्मक महत्व रखता है। प्रथम निर्वचन भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से उपयुक्त है। यह आधुनिक भाषा वैज्ञानिकों द्वारा भी समादृत है। भारोपीय परिवार की अन्य भाषाओं में भी इसे देखा जा सकता है- संस्कृत- दशन् , अवेस्ता- दसन् , ग्रीक-Deka, लैटिन-Decem, २१० : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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