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________________ (२१) अभीशव :- यह अंगुलिका वाचक है। अमीशुः का बहुबचन रूप अभीशवः है। निरुक्त के अनुसार-अभ्यश्नुवते कर्माणि३५ यह सभी कार्योंमें व्याप्त रहती है। इसके अनुसार इसमें अभि + अश् व्याप्तौ धातुका योग है। इस निर्वचनका ध्वन्यात्मक एवं अंर्थात्मक आधार उपयुक्त हैं। लौकिक संस्कृतमें इसके किरण आदि अर्थ प्राप्त होते हैं। अंगुलिके अर्थमें इसका प्रयोग प्राय: महीं देखा जाता। इस आधार पर कालान्तरमें इस शब्दमें अर्थादेश प्रतीत होता है। व्याकरणके अनुसारअभि+इष्+कु प्रत्यय कर बनाया जा सकता है। भाषा विज्ञानके अनुसार यह संगत है। (२२) धू :- इसका अर्थ अंगुलि होता है। निरुक्तके अनुसार धूर्वतेर्वधकर्मण:३५ अर्थात् यह शब्द वधार्थक धुत् धातुसे बनता है क्योंकि इन अंगुलियोंसे हिंसा भी होती है। इसका ध्वन्यात्मक आधार संगत है। धूः गाड़ी के जुए (जोतने का डण्डा) का भी नाम है। जुए का वाचक धूः शब्द भी इसी : धातुसे निष्पन्न माना जाएगा।४१ धारयतेर्वा३५ अर्थात् यह गाड़ी.खींचने वाले जानारको धारण करता है। इसके अनुसार इसमें धृ धातुका योग माना जाएगा। अर्थात्मक दृष्टिकोणसे भी यह निर्वचन उपयुक्त हैं। यास्क विभिन्न अर्थोके प्रकाशनमें ही कई तुको कल्पना करते हैं। इस शब्दमें अर्थ परिवर्तन माना जाएगा। क्योंकि अंगुलिके में प्रयुक्त यह शब्द गाड़ीके जुएका वाचक बन गया। लौकिक संस्कृतमें धूः का प्रयोग अंगुलि के अर्थमें प्राय: नहीं देखा जाता। धृ धातु से धू: माननेमें ध्वन्यात्मक संगति उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार इसे धुर्व । क्विप४२ प्रत्यय कर बना जा सकता है। .. (२३) अन्नम् :- इसका अर्थ होता है अनाज जो खाया जाय (खाद्य पदार्थ)। निरुक्त के अनुसार (१) आनतुं भूतेभ्य:३५ अर्थात् वह प्राणियों के प्रति नत रहता है। इसके अनुसार इस शब्द में आर नम् धातु का योग है। (२) अत्तेर्वा३५ अर्थात् खाया जाने के कारण इसका नाम अन्न पड़ा। इसके अनुसार इसमें अद् भक्षणं धातुका योग है। प्रथम निर्वचनका ध्वन्यात्मक आधार उपयुक्त नहीं है। द्वितीय निर्वचन ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक दृष्टिकोणसे उपयुक्त है। अत: भाषा विज्ञानके अनुसार इसे ही संगत माना जाएगा। अद् भक्षणे धातु का ही भारोपीय परिवारकी अंग्रेजी भाषा में खाना अर्थ में प्राप्त होता है। व्याकरणके अनुसार अद्भक्षणे धातु से क्त५३ प्रत्यय कर इसे बनाया जा सकता है। इसका धातु प्रत्ययार्थ होगा जो खाया गया हो।४४ अद्यते इति अन्नम् यास्क के अनुसार माना जा सकता है।४५ २०७: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचायं यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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