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________________ श्मश्रु, असुर, लोभ, जामिः, निषादः, वाहुः, अवनय, अभीशवः, द्यू:, अन्नम्, बलम् , क्षिप्रम्, संग्रामः, एकम् , त्रयः अष्टौ, दश, विंशतिः, सहस्त्रम्, खलः, आपान: खण्ड:, आखण्डल:, तडित्, अरातयः, अप्नः, कुत्सः, पाकः, हुस्वः, महान्, ववक्षिय, विवक्षसे, गृहम् , सुखम्, खम् , रूपम् , देवरः, योषा, आत्मा, जारः, भगः, मेषः, पशुः, अयम् असौ , वृषल:, अंगाराः; काकः, तित्तिरिः, सिंहः, व्याघ्रः, मेधा, मेधावी, स्तोता, यज्ञः, ऋत्विक, स्तेन, निणीतम्, दूरम् , पुराण, नवम्, दभ्रम्, तिरस्, नेमः, अर्धः, नक्षत्राणि, स्तृभिः, वम्री, सीमिका, उपजिहिका, ऊदरम्, कृदरम्, रम्भः, पिनाकम् , स्त्री, मेना, ग्ना, शेपः वेतस और स्वस्ति। आंशिक ध्वन्यात्मकताकी कमी वाले निर्वचनोंमें मनुष्यः, पंच, धनम्, अन्तिकम् , द्वौ, चत्वारः, शतम् , आक्षाणः, वज्रः, सत्यम् , तस्करः विधवा, स्वसा, प्रियमेध, शब्द परिगणित हैं। भाषा विज्ञान की दृष्टि से ओकः, अर्वा, अंगुली, इनः सम्पूर्ण: मर्यः, प्रस्कण्वः विरूप : महिव्रतः, कूपः, अपित्वे, अभिके, अर्भकम् , सत: आदि शब्दों के निर्वचन अपूर्ण एवं पूर्ण संगत नहीं हैं। अर्थात्मक अपूर्णता वाले निर्वचनोंमें वियात शब्द द्रष्टव्य है। श्मशान, अंगुली तथा देवर शब्दके निर्वचन व्यावहारिक एवं सांस्कृतिक आधार पर आश्रित हैं। ऐतिहासिक आधार पर आश्रित निर्वचनोंमें मनुष्य :, भृगु, अंगिरा वैखानसः, भारद्वाजः, आदि शब्द आते हैं। यास्कके समय नव (९) संख्या अशुभ मानी जाती होगी। अतः न वननीया : न सेवनीया कह कर यास्कने नवका निर्वचन प्रस्तुत किया है। सादृश्यके आधार पर आश्रित निर्वचन खल, खलिहान तथा संग्राम हैं। इसी प्रकार रंग सादृश्य एवं गति सादृश्यके आधार पर कपंजिल शब्दका निर्वचन आधारित है। आकृतिको आधार मानकर खम्, तित्तिरि एवं कपिंजल शब्द यास्क द्वारा विवेचित हैं। तस्कर, तित्तिरिः एवं श्वा शब्दके निर्वचनोंमें कर्मको, पशु एवं सिंह शब्दके निर्वचनोंमें आख्यातको काक शब्दके निर्वचनमें शब्दानुकृतिको, ऋक्षा शब्दके निर्वचन में दृश्यात्मक आधार को तथा स्त्री शब्दके निर्वचनमें यास्कने गुणको आधार माना है। यास्कके निर्वचनोंके परिशीलनसे पता चलता है कि किसी शब्दके निर्वचनमें विविध अर्थोकी उपस्थितिके चलते एक से अधिक निर्वचन भी किए गये हैं। एक से अधिक निर्वचनोंमें कुछ तो यास्कके समकालिक या पूर्वक्ती निरुक्तकारों के निर्वचन हैंया ब्राह्मणादि ग्रन्थोंमें प्राप्तनिर्वचन हैं।यास्क कृत एकशब्दके अनेकनिर्वचनोंमें सभी १९८ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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