________________
—
निO 212, 241 - नि०दु0 212, 242 - वहिश्रि० उणा0 4 151,243 - ऋ० 1 1113 12, 244 - नि0 2 16, 245 – अष्टा0 3 11 1134, 246 - उणा0 314,247 - नि0 2 16, 248 - अष्टां0 3 13 11 (बाहुलकात् ), 249 – नि0 216,250 - प्रथमस्तु भवेदादौ प्रधानेऽपि च वाच्यवत् - मेदि० को० 111147,251 – प्रथेरमच्
-
-
- उणा0 5 168,252 – नि0 216,253 - नि0 2 16, 254 - शृपृभ्यां किच्च - उणा0 4।27 कृतृभ्यामीषन् - उणा0 4 126,255 - क्विव्वचिं- वा0 3 12 1178, 256 – अविसिविसिशुषिभ्यः कित् - उणा० 1 । 144, इतिमन् 257 - नि0 2 16, 258 – इगुपधाज्ञाप्रीकिरः कः - अष्टा0 3 11 1136, 259 – दृसनिजनि0 उणा० 1 13, 260 – उणा0 2 132, 261 - नि0 2:16, 262 – दी इटीमौलोजीज ऑफ यास्क, पेज 64, 263 - अष्टां0 4 11 115, 264 – अष्टा0 3 11 1134, 265 - नरहामित्रेषु च - वा0 प्रा0 3 1102, 266-- मित्रेचर्षो - अष्टा0 6 13 1130, 267 - सर्वनिघृष्व० उणा0 1 1153, 268 - अष्टा0 3 1 | 134, 269 - नि0 2 17, 270 ऋतं शिलोञ्छे पानीये पूजिते दीप्तसत्त्ययोः हैम को0 21161, 271 - अष्टा0 3 12 1102, 272 - नि0 2 17, 273 - इण्शीभ्यां वन् - उणा0 1 1152, 274 – एवौपम्ये परिभवे ईषदर्थेऽवधारणे - हैम0 को० परि0 का0 55, 275 - अम० को0 3 13 161, 276 - अर्तेश्च तुः उणा0 1172, 277 - नि0 2 17, 278 'दी इटीमोलोजीज ऑफ यास्क, पेज 76,279 - पचाद्यच् – अष्टा0 3 11 1134, 280 - पचाद्यच् - अष्टा0 3 11 1134, 281 - कर्मणि घञ् - अष्टा0 3 13 119 282 – प्रहलाद्श्चास्मिदैत्यांनांकालः कलयतामहम् । मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम् । । गी० 10:30,283 - नि0 2 17, 284 - निo 217, 285 - अशिपणाय्योरुडायलुकौ च उणा0 4 1133, 286 – प्रगृह्य पाणी देवान् पूजयन्ति - नि0 217, 287 महति ह्रस्वश्च - उणा० 1 |37, 288 वोतोगुणवचनात् - अष्टा0 4 11 144,289 - नि0217, 290 - दी इंटीमोलोजीज ऑफ यास्क, पेज 44, 291 – उमा0 11154, 292 – नि0 2 17, 293 - उणा० 4 112, 294 –उत्संग चिह्नयोरंक: - अम० को0 3 13 14, 295 - हलश्च - अष्टा0 3 13 1121 |
-
१९६ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
-
-
—