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मयूखे च० | मेदि०को 75 19–10, 145 – नि0 2 12, 146 - पदरूजविशस्पृशो घञ् – अष्टा0 3 13 116, 147 – नि0 2 12, 148 - दी इटीमोलोजीज ऑफ यास्क, पे0 110, 149 - अम0 को0 1 19 12, 150 - वव्रिरिति रूप नाम - नि० 212, 151 - नि0 2 13, 152 - दी इटीमोलोजीज ऑफ यास्क, पे094, 153 - हर्यतेः कन्यन् हिरच् – उणा0 5 144, 154 - नि0 2 13, 155 - दी इटीमोलौजीज ऑफ यास्क, पेज 124, 156 - अम0 को0 1 2 11 ( रामाश्रमी टी0), 157 - नि0 2 13, 158 दी इटीमौलौजीज ऑफ यास्क, पेज 53, 159 - अम0 को0
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1|10|1 (रामा0 टी0), 160 - स्फायि0 - उणा0 2 113, 161 - नि0 2 13, 162 - ऋष्टिरायुधविशेषः तद् बहुला सेना यस्य सोऽयमृष्टिषेणः । इषितसेनो वा प्रेषित सेनः । । - नि0 दु० वृ० 2 13, 163 - दी इटीमोलोजीज ऑफ यास्क, पे० 84, 164 – अम0 को0 2 18 179 ( क्षीर स्वामी), 165 – कृवृजृषीति – उणा० 3 110, 166 – अगांदगांत्संभवसि हृदयादधिजायसे । आत्मा वै पुत्रनामासि स जीव शरदः शतम् ।। श० ब्रा० 14|9|4|26, 167 - नि0 2 13, 168 वह्वपि यत्पित्रा कृतं पापं भवति, ततोऽयं त्रायति - नि० दु० वृ० 2 13, 169 - अम0 को0 रामा0टी0 216127, पुन्नाम्नो नरकाद्यस्मात्त्रायते पितरं सुतः तस्मात् पुत्र इति प्रोक्तः स्वयमेव स्वयंभुवा ।। (मनु0 स्मृ0 – 9138), 170 – अष्टा0 3 12 14, 171 – नि0 2 13, 172 - पश्यति ह्यसौ सूक्ष्मानप्यर्थान् - निo दु० वृ0 2 13, 173 – तै० आO219, 174 - दी इटीमौलौजीज ऑफ यास्क, पेज 55, 175 – इगुपधात् कित् - उणा0 4 1120, 176 - नि0 2 13, 177 – पचाद्यच् - अष्टा० 3|1|134, 178 उत्तरं प्रतिवाक्ये स्यादूर्ध्वोदीच्योत्तमेऽन्यवत् । उत्तरस्तु विराटस्य तनये दिशि चोत्तरा । । - विश्व0 को0 133 199, 179 – निo 2 13, 180 – नि0 2 13, 181 – पचाद्यच् – अष्टा0 3 1 1134, 182 - देवापि चार्ष्टिषेणः शन्तनुश्च कौरव्यौं भ्रातरौ वभूवतुः - नि0 2 13, 183 महा0 आ0 प0 97–98, 184 - नि0 दु वृ0 2 13, 185 – अष्टा0 7 14 142, 186 - नि0 2 13, 187 – सूर्यमादितेयम् – नि0 214, 188 – नि0 2 14, 189 - रसशोणित मांसमेदोमज्जास्थि भावेन विपरिणममानम् मि०
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दु वृ0 2 14, 190 - पृषिंरंजिभ्यां कित् - उणा - 3 | 111 इत्यतच् ।, 191 - नि0 2 14, 192 – नि0 214, 193 घृणिपृश्नीति० उणा0 4 152, 194 – न वै
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१९४ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
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