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इमा भवन्ति शब्दवत्यः1 अर्थात् यह शब्द करने वाली होती है। इसके अनुसार नदी शब्दमें णद् अव्यक्ते शब्दे धातुका योग है। नदी अव्यक्त शब्द करती हुई प्रवाहित होती है।भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोणसे यह निर्वचन उपयुक्त है। इसका ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक आधार संगत है। व्याकरणके अनुसार भी इसे णद् अव्यक्तेसे अ63 प्रत्यय कर णद् + अट - नद +264 डीए नदी बनाया जा सकता है।
(126) विश्वामित्र :- यह एक ऋषिका नाम है। इसका अर्थ होता है सवका मित्र। निरुक्तके अनुसार विश्वामित्रः सर्वमित्र.2 इसके अनुसार विश्वामित्रमें विश्व+मित्रका योग है। विश्व सर्वका वाचक है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोणसे यह उपयुक्त है। प्रातिशाखाके अनुसार भित्र शब्द अगर उ...। पदमें हो त विश्वके अकार का दीर्ध हो जाता है 25 व्याकरणके अनुसार भी विश्व+मित्र-विश्वामित्र माना जायगा । यह सामासिक शब्द है। पाणिनिके अनुसार ऋषि बोध होने पर विश्व + मित्रका विश्वामित्र होगा।
(127) सर्वम् :- इसका अर्थ होता है -- सभी निरुक्तके अनुसार - सर्वं संसृतम्। अर्थात् सर्व शब्द सृ गतौ से निष्पन्न होता है। इसके अनुसार इसका अर्थ होगा संसृत अर्थात् फैला हुआ है। यह एक सर्वनाम है। भाषा वैज्ञानिक दृष्टिसे यह निर्वचन सर्वथा उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार सृगतौ + 4:267 प्रत्यय कर अथवा षत् गतौ धातुसे अच् 268 प्रत्यय कर सर्वम् बनाया जा सकता है। __(128) पैजवन:- यह एक संज्ञा पद है। इसका अर्थ होता है पिजवनका पुत्र । पिजवनस्यपुत्रः पिजवन एक राजाका नाम था उसका पुत्र पैजवन कहलाया। यह तद्धित प्रयोग है। भाषा विज्ञानकी दृष्टिसे यह उपयुक्त है। व्याकरणके अनुसार पिजवन+अण् प्रत्यय कर पैजवन बनाया जा सकता है। यास्कका निर्वचन ऐतिहासिक महत्त्व रखता है।
(129) पिजवन:- यह एक संज्ञा पदं है। इसका शाब्दिक अर्थ होता है स्पृहाके योग्य गतिवाला निरुक्तके अनुसार-पिजवन पुनः स्पर्धनीय जवो वाऽमिश्रीभावगति अर्थात् पिजवन स्पर्धनीयगतिवाला या अमिश्री भाव गति वाला होता है । अमिश्री भाव गति से तात्पर्य है जिसकी गति दूसरों में
१८५ व्यत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क