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________________ संस्कृत उस समय जनसामान्य की भाषा एवं अन्तर्राष्ट्रीय भाषा थी। यास्क केवल लिखित अभिव्यक्तियों को ही भाषा नहीं मानते बल्कि उन्होंने ध्वन्यात्मक रूपों को भी भाषाकी मान्यता दी है। यास्कके समय लेखनकला का विकास हो चुका था।" यास्कने निरूक्तमें ऋग्वेद के मंत्रोंकी व्याख्या एवं निर्वचन क्रममें भाषा विषयक अपना अभिमत स्पष्ट कर दिया है। वैखरी वाणीको भाषा माननेके पक्षमें यास्क भी हैं। वैखरी वाणीको तुरीय वाणी भी कहा गया है। वस्तुत: वैखरीमें पूर्व तीन वाकको व्यक्त नहीं किया जा सकता। अतः परा, पश्यंती एवं मध्यमाको गुहास्थित बताया गया है। परा वाक् मूलचक्र स्थित होती है अर्थात् मूलचक्रस्थ ध्वनि, जोअस्पष्ट एवं सूक्ष्मातिसूक्ष्म है, परावाक् कहलाती है । पश्यन्ती वाक् नाभि संस्थित है जो पराकी अपेक्षा स्पष्ट होती है फिर भी उसे स्पष्ट वाणी नहीं कह सकते क्योंकि उसका भी व्यक्तिकरण नही होता है। मध्यमा वाक् हृदयस्थ होती है जो परा एवं पश्यन्तीकी अपेक्षा स्थूलतर होती जाती है। परा ही क्रमशः पश्यन्ती एवं मध्यमा के रूपमें स्थानगत आश्रयणके चलते परिगणित होती है । पुनः वही वाणी जब कण्ठ देशमें गमन करती है तो वैखरी कहलाती है जो पूर्ण व्यक्त एवं स्पष्ट होती है, जिसका प्रयोग मनुष्य करता है। इसी वैखरी वाणीका सम्बन्ध भाषा एवं भाषा विज्ञानसे है। भाषा विज्ञान :- भारतीय शास्त्रके अनुसार विद्या दो प्रकार की है। परा एवं अपरा । अपरा विद्या में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्द, निरुक्त एवं ज्योतिषकी गणना होती है। परा विद्या विज्ञानको द्योतित करती है। विशेष ज्ञानका सम्बन्ध परा विद्यासे है। भाषा विज्ञान के लिए प्रयुक्त नामों का विवेचन प्राचीन भारतमें भाषा विज्ञानके लिए कई नामोंका प्रयोग हुआ है। भाषा वैज्ञानिक महत्त्वकी दृष्टिसे शिक्षाका नाम प्रथमतः लिया जा सकता है। शिक्षा की गणना वेदांगोंमें होती है। यों तो भाषा वैज्ञानिकदृष्टि से शिक्षाको ध्वनि विज्ञान कहा जा सकता है, क्योंकि यह स्वर वर्णादि का उच्चारण प्रकार विशेष रूपमें वर्णित करता है। प्राचीन कालमें भाषा वैज्ञानिक गुणोंसे युक्त यह अंग भाषा के सम्बन्ध में आवश्यक जानकारी देता था। उस समय भाषा ६ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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