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को ग्रहण कराता है। छात्रोंको सदाचारकी शिक्षा देने वाला आचार्य कहलाता है. 'आचार्य: आचारं ग्राहयति । पुनः आचार्यके संबंधमें यास्कका कहना है कि वह अोंका चयन करता है। छात्रोंको पदार्थोसे अवगत कराने वाला-आचार्य है :आचिनोत्यर्थान् "ग अन्तिम निर्वचन प्रस्तुत करते हुए आचार्य यास्क स्पष्ट करते हैं कि आचार्य छात्रोंमें बुद्धिका संचय करता है अथा छात्रोंकी बुद्धिम अभिवृद्धि करता है:-'आचिनोति बुद्धिमितिवा' .
यास्कके उपर्युक्त.प्रथम निर्वचनमें आश्चर् धातु तथा शेष दोनों में आ चि धातु है। इनका प्रथमनिर्वचन व्याकरणकी दृष्टि से भी उपयुक्त है क्योंकि इसमें चर् धातुका योग है। शेष दोनों निर्वचन अर्थात्मक आधार रखते हैं। आचार्यका अर्थ मंत्रोंकी व्याख्या करने वाला भी होता है। मनुस्मृतिके अनुसार उपनीत शिष्योंको सांग एवं सरहस्य वेदाध्यापन करने वाला आचार्य कहलाता है।
निरुक्त प्रतिपादित आचार्यकी व्याख्या वायु पुराणके वर्णन से साम्य स्खता है। व्याकरणके अनुसार आ चस्मण्यत् से आचार्य बनाया जा सकता है। भाषावैज्ञानिक दृटिस यास्कदा प्रथम निर्वचन उपयुक्त है क्योंकि इसमें ध्वन्यात्मक एवं अर्थात्मक संगति है। शेष दोनों निर्वचनोंका अर्थात्मक महत्व है। (३) कुन्ना:-कुल्मावका अर्थ निम्न श्रेणीका अन्न होता है, जिसे लोकमाषामें कुलवी बहते हैं। भाव का अर्थ उरद भी होता है। इस आधार पर इसका अर्थ होगा खसब सदा यास्वके अनुसार कुल्माष अपने कुलों (अन्न समुदायों) में निम्न श्रेणीका होता है कुलेषु सीदन्ति इस निर्वचनमें मात्र अर्थात्मक आधार है। यास्कका यह निर्वचन ध्वन्यात्मक दृष्टिसे अपूर्ण है। कोष ग्रन्थोंमें कुल्माषको यावक भी कहा गया है. इस आधार पर कुल्माषका अर्थ होगा अधसूखा जौ। इसे कुत्सितो माषः + कुलमान: मी किया जा सकता है। व्याकरण के आधार पर कुलं मस्यति कुल + मसी परिमाणे अपंकुल्माषः। कुल्माष का अर्थ कांजी भी होता हैार कुलं मवतीति कुल्माणमा कुल+मन हिंसायाम् +अणकुल्माष शब्दमें आज अर्थ संक्रौच हो गया है। खराब अन्नके लिए प्रयुक्त कुल्माष शब्द आज उरद, कुलथी तक ही सीमित हो गया है। पाणिनिके कालमें भी कुल्माष अन्नका ही वाचक था।१४ यास्कके समय इसका अर्थ कांजी नहीं था। (७) क्या:-इसका अर्थ शाखा होता है।इसके निर्वचनमें यास्क 'वी'धातुकासंकेत करते हैं वैते: वातायना भवन्ति' अर्थात् मत्यर्थक'वी' धातु से यह शब्द बना है क्योंकि यह वातायन (हवा का स्थान) होता है। शाखा हवासे डोलती रहती है। वी
१२३ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क