SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निष्पन्न है। इन्द्रने ज्ञ ऋचाओस ही वृत्रको मारा था। मार सकने के कारण ही जा ऋचाओंका नाम शबारी पड़ा। स्पष्ट है कि शक्वरी शब्दमें शक् धातुकी विद्यामानाला ऐतिहासिक आधारसे युक्त है। इन्द्र के द्वारा वृत्रके वध की कथा सर्वविदित एवं अमनोकता है। यह आज के लिए की ऐतिहासिक महत्व रखता है। बारक बालमें भी यह कथा ऐतिहासिक थी। फलत: कास्कने इस निर्वचन में द्वितीय अध्याय शन्तनुशटक निर्वचन प्रसंगमें इतिहासकी चर्चा है कृत सब्यके निधन सास्क कहते हैं तत्वोकृतः?..कन्ट्रोएर झवैतिहासिवा अर्थात एंजिलिकाबलाई किस्सा अपत्य अकुर होता है। निश्चय ही एनितिका बदन बिहासिक अारी अन्वित होता है। यहां कृत्रको लरात्रा अपत्व मानने में पूर्ण ऐतिहासिकता है। विवामित्र शटका मी विहान प्रवाहोता है। पिजनके अपत्य राजा सुदासकै पुनहित पुनः वहीं पर पिजवनको जवनपुत्र बताकर इतिहासकै महत्वको स्थिर स्ख है। कुक्षिक शटके संबंध बनना है कि कुक्षिक नामक एक राजा हुए जो अच्छे काकि सम्पादनाव चिल्लाते रहते थे। फलत:कुल (चिल्लाना) से कुतिक शब्द माना गया पुनः खम धमांक प्रसासन करने के कारण प्रकाशित करने अर्थकाले कुन धातुसे कुशिक शब्द माना गया। अथा वह धनों का प्रधुर याना था मनुष्यको मनु या मनुष का अपत्य कहा गया है की ज्वालामें उत्पन्न होने वाला कला गया है। भृगुका अर्थ है जो भुना हुमा शरीर बाला न हो। ज्वालाम उत्पन्न होने के बाद भी जका शरीर भुना नहीं था। बंगाकै शान्त होने पर अमित ऋषि उत्पन्न हुए वैखानस शब्द विशेष लपमें स्थानको खोदनेके कारण प्रसिद्ध हुआ। इसी प्रकार भरण क्रियाके चलते भारद्वाज शब्द प्रसिद्ध है। ये समी शब्द ऋषि बाधक हैं जिनमें किसी न किसी रूपमें झविलास छिपा है। चतुर्थ अध्यायमें अदितिशब्दक सम्बन्धमें कल गया- अदितिरदीना देवमाताअर्थात् दीन न हुई देवॉकी माता अदिति है। यह अर्थ ऐतिहासिकॉका है। अदिति शब्दमें देवमाताके अदीन होने का इतिहास स्पष्ट होता है। पष्ट अध्याय के नासत्या, कुलंग,", शिरिम्बिठः, पराशर आदि शब्द ऐतिहासिक आधार रखते हैं। सप्तम अध्याय में त्रिष्टुप तीन बार स्तवन किया गया है के आधार पर तथा ११८ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy