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________________ अमुख्यार्थ ही कहा जाएगा। वाक्य, प्रकरण, औचित्य, देश, काल आदि से भी शब्दार्थ विभाजित होते हैं। पुनः संयोग, विप्रयोग, साहचर्य, विरोध, अर्थ (प्रयोजन), प्रकरण, लिंग, अन्य शब्दसन्निधि, सारूप्य आदि भी अर्थ नियमन करते हैं । ३४ व्याकरण, उपमान, कोष, आप्तवाक्य, व्यवहार, वाक्यशेष, सन्निधि तथा पदसिद्धि भी अर्थ नियमनमें सहायक हैं । ३५ निरुक्तमें ये सारे अर्थनियामक तत्त्व यथाक्रम वर्णित नहीं हैं। लेकिन निम्नलिखित अर्थ नियामक तत्त्वोंको अर्थ नियमन के प्रसंग में विवेचित किया गया है। व्याकरण :- व्याकरणकी दृष्टिसे शब्द दो प्रकार के होते हैं- व्युत्पन्न एवं अव्युत्पन्न। निरुक्तकारयास्कका विचार है कि व्युत्पन्न शब्दोंका निर्वचन व्याकरण पद्धतिके अनुसार ही कर लेना चाहिए। फलतः व्याकरण पद्धतिके अनुसार अर्थका प्रकाश यास्कानुमोदित है। ३६ कोष :- यास्कके समयमें कोष शास्त्र नामक स्वतंत्र शास्त्र नहीं था, . क्योंकि उस समय के किसी भी कोषग्रन्थकी उपलब्धि नहीं होती । कोषशास्त्रका आरंभिक रूप निघण्टु नामक ग्रंथ ही था । यद्यपि निघण्टु ग्रन्थोंकी संख्या अनेक हो सकती है। यास्कका निरुक्त भी निघण्टु ग्रन्थकी व्याख्या है। निघण्टुमें क शब्दोंका संग्रह है। इसमें शब्दोंका संग्रह प्रकरणानुरूप एवं विषयानुरूप हुआ है। प्रकरणानुरूप एवं विषयानुरूप शब्दोंके संग्रहसे अर्थप्रकाशन भी होता है। जैसे-गौ आदि पृथिवी के इक्कीस नाम हैं।३७ जातरूप आदि हिरण्य के पन्द्रह नाम हैं । ३८ इस प्रकार गौ प्रमृति शब्द पृथिवीके अर्थको प्रकट करते हैं तथा जातरूप प्रमृति शब्द हिरण्यके अर्थको प्रकट करते हैं। आप्तवाक्य :- अर्थनियामक तत्त्वोंमें आप्तवाक्यके महत्त्व का स्पष्टीकरण यास्कके पुरुष विद्या नित्यत्वात् कर्मसम्पत्तिमंत्रो वेदे३९ के द्वारा हो जाता है। पुनः असक्षात्कृतधर्मा व्यक्तियोंने साक्षात्कृत धर्मा ऋषियोंसे मन्त्रोंका उपदेश ग्रहण किया । ४० स्पष्ट है आप्तवाक्यका अर्थ विनियमनमें महत्त्वपूर्ण योग है। साम्प्रतिक शब्दोंके अर्थ आप्तानुमोदित होनेके चलते ही प्रयोगार्ह हैं। सादृश्यः-नामके आधार निर्धारण में सादृश्य भी कारण हैं । निर्वचनके क्रममें सादृश्यको भी यास्क महत्त्व देते हैं। अश्वके बाहुमूलको कक्ष कहा जाता है। अश्वके बाहुमूलकी समानताके आधार पर मनुष्यके बाहुमूलको भी कक्ष कहा जाता है। ४१ इसी प्रकार क्षीर शब्द दुग्ध का वाचक है क्योंकि इस में क्षरण क्रिया की समानता है । ४२ इस प्रकार १०८ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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