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________________ सुरक्षित है। भाषा विज्ञानमें अर्थ परिवर्तन अर्थ विकासके नामसे भी जाना जाता है। सामान्य रूपमें अर्थ विकासकी तीन स्थितियां हैं-अर्थविस्तार, अर्थसंकोच तथा अर्थादेश । अर्थ विस्तार :- शब्दके अर्थ विस्तारमें प्रारंभिक अर्थ या सामान्य अर्थ अन्य अर्थको भी अभिव्यक्त करता है। अन्य अर्थोका प्रकाशन गुणसादृश्य, कर्मसादृश्य आदि के आधार पर होता है। जैसे-निरुक्तमें प्राप्त होता है कि पयः शब्द पान सम्बद्ध होने के चलते या पीये जाने के कारण दुग्धका वाचक है लेकिन जलमें पीयमानता होने के कारण जलको भी पयः कहा जाने लगा । १६ पयोधि शब्दमें जल अर्थ अभी सुरक्षित है। पुन: मेधका पर्याय पयोधर शब्द है जिसमें जल अर्थ स्पष्ट है। इसी प्रकार क्षीर१७ शब्द क्षरण क्रियाके चलते दुग्धका अर्थ रखता है। लेकिन क्षरण समानताके कारण कालान्तरमें क्षीर शब्द जलका भी वाचक हो गया। इसी प्रकार अर्थ विस्तारके उदाहरण में निरुक्त से अहि : १८, रश्मि आदि शब्दोंको लिया जा सकता है। अर्थ संकोच :- इसके अनुसार प्रकृत अर्थ किसी कारण विशेषके चलते किसी एक क्षेत्रमें संकुचित हो जाता है। यथा-नाकर शब्दका अर्थ था नहअकः अर्थात् जहां दुःख नहीं हो लेकिन यह शब्द स्वर्गके अर्थमें संकुचित हो गया है। दुःख से रहित स्थान अनेक थे लेकिन उनमें स्वर्गकी प्रधानताके चलते नाक शब्द स्वर्गके लिए ही रूढ़ हो गया है। इसी प्रकार राजन् २१ शब्द राजत्व विशिष्ट गुण के चलते विविध पदार्थों या संज्ञाके राजत्व रहने पर भी भूपालके लिए संकुचित हो गया है। वेदमें वरूण आदि देवताओंके लिए भी राजन् शब्दका प्रयोग हुआ है । २२ जबकि आज भूपालके अर्थमें रूढ़ है। इसी प्रकार निरुक्तमें इनके अतिरिक्त हिरण्यं, मृगः, गौ, पति, कल्याण आदि शब्द अर्थ संकोचके उदाहरण में देखे जा सकते हैं! इमं मे गंगे यमुने२३ ...इस निरुक्तोधृत वैदिक मन्त्र में गंगा शब्द गमन विशेष के कारण सामान्य रूपमें प्रवाहयुक्त नदीका वाचक है लेकिन यह शब्द कालान्तरमें मन्दाकिनीके लिए रूढ़ हो गया। अर्थादेशः-अर्थादेश शब्दका अर्थ परिवर्तित होकर किसी दूसरे अर्थ में रूढ़ हो जाता है। जैसे ग्राममें उत्पन्न होनेवाले या रहने वालेको ग्राम्य कहा जा सकता है जो ग्रामीण का वाचक है लेकिन ग्राम्य शब्द मूर्खके अर्थ में रूढ़ हो गया है। गांवमें रहनेवाले व्यक्तियों की शिक्षा दीक्षा समुचित रूप में नहीं होती। वे लोग शहर के व्यक्तियों की अपेक्षा अल्पज्ञान वाले होते हैं।प्रधानता अल्पज्ञों की ही होती है, अत: वे लोग ग्राम्य कहे जाते १०६ : व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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