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________________ नि. २११, ७९. नि. २११, ८०. नि. ६।३, (.१. नि. २।१, ८२. नि. २११, ८३ नि. ५।४, ८४. नि. २।१, ८५. नि. २११, ८६ . शब्दार्थों काव्यम्-भामह, ८७. नि. २।१, ८८. नि. २।१, ८९. नि.दु.वृ. १।१।१ पृ. ५ (ख) अर्थात्मक आधार एवं यास्कके निर्वचन अर्थ :- अर्थ शब्द ऋ गतौ धातु से थन् प्रत्यय करने पर निष्पन्न होता है या अर्थ उपयांचायाम धातु से घत्र प्रत्यय करने पर बनाया जा सकता है। यास्कने अर्थ शादका निर्वचन प्रस्तुत करते हुए कहा है. अर्थोऽर्तेऽरणस्थो वा अर्थात् अर्थ शब्द के गतौ भतुसे या अस्स्था धातुओं से निष्पन्न है। ऋ गतौ धातुसे निष्पन्न मानने पर याचकोंके द्वारा उसके पास जाया जाता है तथा अस्थासे निष्पन्न मानने पर मरनेके बाद यह यहीं रह जाता है, ऐसा अर्थ करना होगा। धन के सम्बन्ध में उपर्युक्त दोनों निर्वचन उपयुक्त हैं। समानताके आधार पर पदार्थ भी इसी प्रकार माने जायेंगे। मण्डकोपनिषद् रूपको अर्थ मानता है। वहां नाम पदसे शब्दात्मक तथा रूप पदसे अर्थात्मक जगत् का ग्रहण होता है।५ शब्दोच्चारण कालमें जिस अर्थकी प्रतीति होती है वहीं उसका शब्दार्थ होता है। अग्नि शब्दके उच्चारण करने पर दहनकाग्नि का सम्प्रत्यय होता है। अत: अग्निका अर्थ दहन कर्म माना जाएगा। यदि शब्द भाषाका वाह्य रूप है तो अर्थ उससे उदभासित होने वाला लावण्य, शब्द भाषाका शरीर है तो अर्थ उस शरीरमें रहने वाली आत्मा, शब्दको अगर पुष्प माने तो उसमें रहने वाला सुगन्ध उसका अर्थ है। शब्दका महत्त्व उसके अर्थके कारण ही है। शब्दका वाह्य रूप जो उपस्थित होता है वह न तो सत्य है और न उपयोगी ही। जिस प्रकार आत्माके बिना शरीर एवं सुगन्धके बिना पुष्प महत्त्वहीन हैं उसी प्रकार अर्थके बिना शब्द भी महत्त्वहीन है। शब्दमें रहने वाली भावना सत्य एवं उपयोगी है। इस भावनाको भावित करनेके लिए ही किसी शब्दको प्रयोगमें लाया जाता है। अनर्थज्ञ वाणीको देखता हुआ भी नहीं देखता तथा सुनता हुआ भी नहीं सुनता।" अर्थात् अर्थज्ञानके अभावमें वह शब्दोंसे लाभ नहीं उठा पाता। शब्दकी नित्यताका कारण उसकी अर्थात्मकता है प्रयोगात्मकता या चिरस्थायित्व नहीं। यदि शब्दकी अर्थगत उपयोगिताको निकाल दिया जाए तो उस शब्द और शोर में कोई अन्तर नहीं रह जाएगा। अर्थवदधातुरप्रत्ययः प्रातिपदिकम् के द्वारा पाणिनिने भी शब्दकी अर्थवत्ताको स्वीकार किया है। विभक्तियोंका योग भी उसकी अर्थात्मक शक्तियोंको नहीं बदलता। २०४: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचायं यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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