SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अविनाभाव सम्बन्ध हैं। ध्वनिको शब्दका वह भौतिक रूप माना गया है जिसमें अर्थ रूप प्राणको आश्रय मिलता है। ध्वन्यात्मक आधार निर्वचनका सर्वाधिक सशक्त आधार है आधुनिक भाषा विज्ञानमें तो ध्वनिकी ही प्राथमिकता प्राप्त है। अर्थात् निर्वचनकी प्रक्रियामें ध्वन्यात्मक आधारकी उपेक्षा युक्तिसंगत नहीं मानी जाती। यास्कके निर्वचनोंमें भी ध्वनिको महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है लेकिन शब्दोंके अर्थान्वेषण तथा अर्थ विनिश्चयमें यास्कने ध्वनिकी उपेक्षा भी की है। इन्होंने अर्थको ही प्रधान माना है, शब्दको गौण। इनके अनुसार निर्वचन क्रममें जहां अर्थकी संगति न हो वहां पर भी अर्थकी प्रधानताके अनुसार किसी क्रियाकी समानतासे निर्वचन कर लेना चाहिए।८७ जहां किसी क्रियाकी भी समानता न रहे वहां किसी स्वर व्यंजनकी समानताके आधार पर भी निर्वचन कर लेना चाहिए। निर्वचनमें व्याकरणकी प्रक्रिया की अवहेलना भी हो तो यास्क को इसकी चिन्ता नहीं।८८ अर्थकी प्रधानताके चलते ही यास्कके निर्वचनोंका सर्वत्र ध्वन्यात्मक औचित्य दृश्य नहीं होता। यास्कके निर्वचनोंके परिशीलनसे स्पष्ट होता है कि इनके कुछ निर्वचन ध्वन्यात्मक आधारसे पूर्ण संगत हैं। जिन शब्दोंके अर्थ शब्द निहित क्रियाके अर्थसे पूर्ण साम्य रखते हैं उन निर्वचनोंमें ध्वनिकी पूर्ण रक्षा हुई है तथा उनका ध्वन्यात्मक आधार सर्वथा संगत है। निरुक्त सम्प्रदाय निर्वचन प्रक्रियाको अधिक महत्त्व देता है निर्वचन प्रक्रियाके अनुसार वर्णागम, वर्ण विपर्यय, वर्णविकार, वर्ण नाश तथा धातुओंका अर्थातिशय योग८९ पांच सिद्धान्त मान्य हैं। यद्यपि निर्वचनके ये पांच प्रकार मूल रूपमें ध्वनि को ही आधार मानते हैं। ये सभी प्रकार ध्वनिसे साक्षात् सम्बन्ध रखते हैं फिर भी किसी भी शब्दके अनुसन्धानमें विविध निर्वचनोंका उपस्थापन ध्वन्यात्मक रक्षा में सर्वत्र सफल नहीं होता। निर्वचनके पांच प्रकार ध्वनिपरिवर्तनकी अवस्थाको संकेत करते हैं। भाषा विज्ञानतो ध्वनि परिवर्तनकी सीमाओंसे आबद्ध होकर चलता है जबकि निरुक्तानुमोदित ध्वनिपरिवर्तन निर्वचन सिद्धान्तके दीर्घ आयोमोंमें आबद्ध है। ध्वन्यात्मक महत्त्व वाले निवर्चनोंको यथा स्थान निर्वचनके क्रममें दिखलाया जाएगा। -:संदर्भ संकेत:-१.खनिकष्यज्यसिवसिवनिसनिध्वनिग्रन्थचलिम्यश्च-उणा.४।१३८,२. १०२: व्युत्पत्ति विज्ञान और आचार्य यास्क
SR No.023115
Book TitleVyutpatti Vigyan Aur Aacharya Yask
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamashish Pandey
PublisherPrabodh Sanskrit Prakashan
Publication Year1999
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy