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प्राथमिक
[प्रथम संस्करण से ]
मनुष्य में जो सोचने समझने की योग्यता है उसके फलस्वरूप उसे अपने विषय की चिन्ता ने अनादिकाल से सताया है । वर्तमान की चिन्ताओं के अतिरिक्त उसे इस बात की भी बड़ी जिज्ञासा रही है कि भविष्य में उसका क्या होने वाला है ? कल की बात आज जान लेने के लिए वह इतना आतुर हुआ है कि उसने नाना प्रकार के आधारों से भविष्य का अनुमान करने का प्रयत्न किया है। मनुष्य के रूप, रंग, शरीर व अंग-प्रत्यंग के गठन आदि पर से तो उसके भविष्य का अनुमान करना स्वाभाविक ही है । किन्तु उसकी बाहरी परिस्थितियों, यहाँ तक कि तारों और नक्षत्रों की स्थिति पर से एक-एक प्राणी के भविष्य का अनुमान लगाना भी बहुत प्राचीनकाल से प्रचलित पाया जाता है । फलित ज्योतिष में लोगों का विश्वास सभी देशों में रहा है । इसी कारण इस विषय का साहित्य बहुत विपुल पाया जाता है । ज्योतिष शास्त्र के ज्ञान के आधार से अपनी जीविका अर्जन करने वाले लोगों की कभी किसी देश में कमी नहीं हुई ।
भारतवर्ष का ज्योतिष शास्त्र भी बहुत प्राचीन है । संस्कृत और प्राकृत में इस विषय के अनेक ग्रन्थ पाये जाते हैं । ज्योतिष शास्त्र के मुख्य भेद हैं गणित और फलित । गणित ज्योतिष विज्ञानात्मक है जिसके द्वारा ग्रहों की गति और स्थिति का ज्ञान प्राप्त कर काल-गणना में उसका उपयोग किया जाता है । ग्रहों की स्थिति व गति पर से जो शुभ-अशुभ फल का निरूपण किया जाता है उसे फलित ज्योतिष कहते हैं । इसका आधार लोक श्रद्धा के सिवाय और कुछ प्रतीत नहीं होता । तथापि उसकी लोकप्रियता में कोई सन्देह नहीं । यति, मुनि, साधुसन्त व विद्वानों से बहुधा लोग आशा करते हैं कि वे उनके व उनके बाल-बच्चों के भावी जीवन व सुख-दुःख की बात बतला । किन्तु यह तो स्पष्ट ही है कि ये भविष्यवाणियाँ सदैव सत्य नहीं निकलतीं । यों 'हाँ' और 'ना' के बीच प्रत्येक पक्ष की पचास प्रतिशत सम्भावना अवश्यम्भावी है । इस प्रसंग में यूनान के इतिहास की एक बात याद आती है । उस देश में 'डेल्फी' नामक देवता के मन्दिर के