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________________ परिशिष्टाऽध्यायः 477 वृश्चिकं दन्दशूकं वा कीटकं वा भयप्रदम् । निर्भयं लभते यस्तु धनलाभो भविष्यति ॥97॥ जो स्वप्न में बिच्छ, सांप तथा अन्य भयकारक जन्तुओं से निर्भय अवस्था को प्राप्त होते हुए देखे उसे धनलाभ होता है ।।97॥ पुरीषं छदितं मूत्रं रक्तं रेतो वसान्वितम् ।। भक्षयेत् घृणया होनस्तस्य शोकविमोचनम् ॥98॥ जो स्वप्न में टट्टी, वमन, मूत्र, रक्त, वीर्य, चर्बी इत्यादिक घृणित वस्तुओं को घृणा रहित भक्षण करते हुए देखे उसका शोक नष्ट होता है ।।981 वृषकुञ्जरप्रासावक्षीरवृक्षशिलोच्चये। अश्वारोहणं शुभस्थाने दृष्टमुन्नतिकारणम् ॥99॥ जो स्वप्न में बैल, हाथी, महल, पीपल, बड़, पर्वत एवं घोड़े के ऊपर चढ़ता हुआ देखे उसकी उन्नति होती है ।।99॥ भूपकुञ्जरगोवाहधनलक्ष्मीमनोभुवः । भूषितानामलंकारर्दर्शनं विधिकारणम् ॥100॥ जो स्वप्न में राजा, हाथी, गाय, सवारी, धन, लक्ष्मी, कामदेव तथा अलंकार और आभूषणों से युक्त पुरुष का दर्शन करता है उसकी भाग्य की वृद्धि होती है।11000 पयोधि तरति स्वप्ने भुङ्क्ते प्रासादमस्तके। देवत: लभते मन्त्रं तस्य वैश्वर्यमद्भुतम् ॥101॥ जो स्वप्न में अपने को समुद्र पार करते हुए, महल के ऊपर भोजन करते हुए तथा किसी अभीष्ट देवता से मन्त्र प्राप्त करते हुए देखता है, उसे अद्भुत ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ॥1010 शुभ्रालंकारवस्त्राढ्या प्रमदा च प्रियदर्शना। श्लिष्यति यं नरं स्वप्ने तस्य सम्पत्समागमः ॥102॥ जिसे स्वप्न में स्वच्छ वस्त्रों और अलंकारों से युक्त सुन्दर स्त्री आलिंगन करती हुई दिखलाई पड़े, उसे सम्पत्ति प्राप्ति होती है ।102॥ सूर्यचन्द्रमसौ पश्येदुदयाचलमस्तके। स लात्यभ्युदयं मयो दुःखं तस्य च नश्यति ॥103॥ जो स्वप्न में उदयाचल पर सूर्य और चन्द्रमा को उदित होते हुए देखे उस
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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