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परिशिष्टाऽध्यायः
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पुरुष के देखने से छह मास तक मृत्यु नहीं होती, लेकिन छायापुरुष के मस्तक शून्य देखने से छह मास के भीतर ही मृत्यु अवश्यम्भावी है ।।71॥
छायाबिम्बं स्फुटं पश्येद्यावत्तावत् स जीवति ।
व्याधिविघ्नादिभिस्त्यक्त: सर्वसौख्याधिष्ठितः ॥72॥ छायापुरुष को स्पष्ट रूप से देखने पर व्यक्ति दीर्घजीवी होता है तथा व्याधि विघ्न इत्यादि से रहित हो सुखी रूप में निवास करता है ।।72।।
आकाशे विमले छायापुरुषं हीनमस्तकम्।
यस्यार्थं वीक्ष्यते मन्त्री षण्मासं सोऽपि जीवति ॥73॥ मन्त्रित व्यक्ति यदि निर्मल आकाश में छायापुरुष को बिना मस्तक के देखे तो जिस रोगी के लिए छायापुरुष का दर्शन किया जा रहा है वह छह मास जीवित रहता है ।।731
पादहीने नरे दृष्टे जीवितं वत्सरत्रयम् ।
जंघाहीने समायुक्तं जानुहोने च वत्सरम् ॥740 मन्त्रित पुरुष को छायापुरुष बिना पैर के दिखलाई पड़े तो जिसके लिए देखा जा रहा है वह व्यक्ति तीन वर्ष तक जीवित रहता है, जंघाहीन और घुटनेहीन छायापुरुष दिखलाई पड़े तो एक वर्ष तक जीवित रहता है ।।7411
उरोहीने तथाष्टादशमासा अपि जीवति ।
पञ्चदश कटिहीनेऽष्टौ मासान् हृदयं विना ॥75॥ यदि छायापुरुष हृदय रहित दिखलाई पड़े तो आठ महीने की आयु, वक्षस्थल रहित दिखलाई पड़े तो अठारह महीने की आयु और कटिहीन दिखलाई पड़े तो पन्द्रह महीने की आयु समझनी चाहिए ॥75॥
षड्दिनं गुह्यहीनेऽपि करहीने चतुर्दिनम् ।
बाहुहीने त्वहर्युग्मां स्कन्धहीने दिनैककम् ॥76॥ यदि छाया पुरुष गुप्तांगों से रहित दिखलाई पड़े तो छह दिन की आयु, हाथ से रहित दिखलाई पड़े तो चार दिन की आयु, बाहुहीन दिखलाई पड़े तो दो दिन की आयु और स्कन्धहीन दिखलाई पड़े तो एक दिन की आयु समझनी चाहिए ॥761
यो नरोऽत्रैव सम्पूर्ण: सांगोपांगविलोक्यते। स जीवति चिरं काल न कर्तव्योऽत्र संशयः ॥77॥