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________________ 472 भद्रबाहुसंहिता मदमदनविकृतिहीनः पूर्वविधानेन वीक्ष्यते । सम्यक् मन्त्री स्वपरच्छायां छायापुरुषः कथ्यते सद्भिः ॥69 || वह मन्त्रित व्यक्ति निश्चय से छायापुरुष है जो अभिमान, विषय-वासना और छल-कपट से रहित होकर पूर्वोक्त कूष्माण्डिनी देवी के मन्त्र के जाप द्वारा पवित्र होकर अपनी छाया को देखता है || 69 ॥ समभूमितले स्थित्वा समचरणयुगप्रलम्बभुजयुगलः । बाधारहिते धर्मे विवर्जिते क्षुद्रजन्तुगणैः ॥ 70 जो समतल – बराबर चौरस भूमि में खड़ा होकर पैरों को समानान्तर करके हाथों को लटकाकर बाधा रहित और छोटे जीवों से रहित (सूर्य की धूप में छाया का दर्शन करता है) वह छायापुरुष कहलाता है ||70|| नाशाग्रे स्तनमध्ये गुह्यं चरणान्तदेशे । गगनतलेऽपि छायापुरुषो दृश्यते निमित्तज्ञैः ॥ 71 निमित्तज्ञों ने उसे छायापुरुष कहा है जिसका सम्बन्ध नाक के अग्रभाग से, दोनों स्तनों के मध्य भाग से, गुप्तांगों से, पैर के कोने से, आकाश से अथवा ललाट सेहो ॥71॥ विशेष- - छाया पुरुष की व्युत्पत्ति कोष में 'छायायां पुरुष: दृष्टः पुरुषाकृति - विशेष : ' की गयी है अर्थात् आकाश में अपनी छाया की भांति दिखाई देने वाला पुरुष छायापुरुष कहलाता है । तन्त्र में बताया गया है - पार्वती जी ने शिवजी से भावी घटनाओं को अवगत करने के लिए उपाय पूछा, उसी के उत्तर में शिव ने छायापुरुष के स्वरूप का वर्णन किया है। बताया गया है कि मनुष्य शुद्धचित्त होकर अपनी छाया आकाश में देख सकता है। उसके दर्शन से पापों का नाश और छह मास के भीतर होने वाली घटनाओं का ज्ञान किया जा सकता है । पर्वती ने पुनः पूछा - मनुष्य कैसे अपनी भूमि की छाया को आकाश में देख सकता है ? और कैसे छह माह आगे की बात मालूम हो सकती है ? महादेवजी ने बताया कि आकाश के मेघशून्य और निर्मल होने पर निश्चल चित्त से अपनी छाया की ओर मुँह कर खड़ा हो गुरु के उपदेशानुसार अपनी छाया में कण्ठ देखकर निर्निमेष नयनों से सम्मुखस्थ गगनतल को देखने पर स्फटिक मणिवत् स्वच्छ पुरुष खड़ा दिखलाई देता है । इस छायापुरुष के दर्शन विशुद्ध चरित्र वाले व्यक्तियों को पुण्योदय के होने पर ही होते हैं । अतः गुरु के वचनों का विश्वास कर उनकी सेवा-शुश्रूषा द्वारा छायापुरुष सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त कर उसका दर्शन करना चाहिए । छाया
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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