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________________ प्रस्तावना 53 से ज्ञात होता है कि इस ग्रंथ में पांच खण्ड और बारह हजार श्लोक हैं । बताया गया है प्रथमो व्यवहाराख्यो ज्योतिराख्यो द्वितीयकः । तृतीयोऽपि निमित्ताख्यश्चतुर्थोऽपि शरीरजः ।।1।। पंचमोऽपि स्वराज्यश्च पंचखण्डैरियं मता। द्वादशसहस्र प्रमिता संहितेयं जिनोदिता ॥2॥ व्यवहार, ज्योतिष, निमित्त, शरीर एवं स्वर ये पाँच खण्ड भद्रबाहु संहिता में हैं। इस ग्रंथ में एक विलक्षण बात यह है कि पाँच खण्डों के होने पर दूसरे खण्ड को मध्यम और तीसरे खण्ड को उत्तर खण्ड कहा गया है। इस संस्मरण में हम केवल 27 अध्याय ही दे रहे हैं। 30वाँ अध्याय परिशिष्ट रूप से दिया जा रहा है । अत: 27 अध्यायों के वर्ण्य विषय पर विचार करना आवश्यक है। प्रथम अध्याय में ग्रन्थ के वर्ण्य विषयों की तालिका प्रस्तुत की गयी है। आरम्भ में बताया गया है कि यह देश कृषिप्रधान है, अतः कृषि की जानकारीकिस वर्ष किस प्रकार की फसल होगी प्राप्त करना श्रावक और मुनि दोनों के लिए आवश्यक था । यद्यपि मुनि का कार्य ज्ञान-ध्यान में रत रहना है, पर आहार आदि-क्रियाओं को सम्पन्न करने के लिए उन्हें श्रावकों के अधीन रहना पड़ता था, अतः सुभिक्ष-दुभिक्ष की जानकारी प्राप्त करना उनके लिए आवश्यक है । निमित्तशास्त्र का ज्ञान ऐहिक जीवन के व्यवहार को चलाने के लिए आवश्यक है । अतः इस अध्याय में निमित्तों के वर्णन करने की प्रतिज्ञा की गयी है और वर्ण्य विषयों की तालिका दी गयी है। द्वितीय अध्याय में उल्का-निमित्त का वर्णन किया गया है। बताया गया है कि प्रकृति का अन्यथाभाव विकार कहा जाता है; इस विकार को देखकर शुभाशुभ के सम्बन्ध में जान लेना चाहिए । रात को जो तारे टूटकर गिरते हुए जान पड़ते हैं, वे उल्काएँ हैं । इस ग्रन्थ में उल्का के धिष्ण्या, उल्का, अशनि, विद्युत् और तारा ये पांच भेद हैं। उल्का फल 15 दिनों में, धिष्ण्या और अशनि का 45 दिनों में एवं तारा और विद्य त का छ: दिनों में प्राप्त होता है। तारा का जितना प्रमाण है उससे लम्बाई में दूना धिष्ण्या का है। विद्युत् नाम वाली उल्का बड़ी कुटिल-टेढ़ी-मेढ़ी और शीघ्रगामिनी होती है । अशनि नाम की उल्का चक्राकार होती है, पौरुषी नाम की उल्का स्वभावतः लम्बी होती है तथा गिरते समय बढ़ती जाती है । ध्वज, मत्स्य, हाथी, पर्वत, कमल, चन्द्रमा, अश्व, तप्तरज और हंस के समान दिखाई पड़ने वाली उल्का शुभ मानी जाती है । श्रीवत्स, वज्र, शंख और स्वस्तिकरूप प्रकाशित होने वाली उल्का कल्याणकारी और सुभिक्षदायक है। जिन उल्काओं के सिर का भाग मकर के समान और पूंछ गाय के समान हो, वे उल्काएं
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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