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________________ 52 भद्रबाहुसंहिता होता था । इन दोनों देशों के ज्योतिष सिद्धान्त निमित्तों पर आश्रित थे । सुभिक्षदुर्भिक्ष, जय-पराजय एवं यात्रा के शकुनों के सम्बन्ध में वैसा ही लिखा मिलता है, जैसा हमारे यहाँ है । प्राकृतिक और शारीरिक दोनों प्रकार के अरिष्टों का विवेचन ग्रीस और रोम सिद्धान्तों में मिलता है । पंचसिद्धान्तिका में जो रोमक सिद्धान्त उपलब्ध है, उससे ग्रहगणित की मान्यताओं पर भी प्रकाश पड़ता है । भद्रबाहु संहिता का वर्ण्य विषय अष्टांग निमित्तों का इस एक हो ग्रन्थ में वर्णन किया गया है। यह ग्रन्थ द्वादशांग वाणी के वेत्ता श्रुतकेवली भद्रबाहु के नाम पर रचित है । इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में बतलाया गया है कि प्राचीन काल में मगध देश में नाना प्रकार के वैभव से युक्त राजगृह नाम का सुन्दर नगर था । इस नगर में राजगुणों से परिपूर्ण नानागुणसम्पन्न सेनजित ( प्रसेनजित संभवत: बिम्बसार का पिता ) नाम का राजा राज्य करता था । इस नगर के बाहरी भाग में नाना प्रकार के वृक्षों से युक्त पाण्डुगिरि नाम का पर्वत था । इस पर्वत के वृक्ष फल-फूलों से युक्त समृद्धिशाली थे तथा इन पर पक्षिगण सर्वढ़ा मनोरम कलरव किया करते थे । एक समय श्रीभद्रबाहु आचार्य इसी पाण्डुगिरि पर एक वृक्ष के नीचे अनेक शिष्य-प्रशिष्यों से युक्त स्थित थे, राजा सेनजित ने नम्रीभूत होकर आचार्य से प्रश्न किया पार्थिवानां हितार्थाय भिक्षूणां हितकाम्यया । श्रावकाणां हितार्थाय दिव्य ज्ञानं ब्रवीहि नः ॥ शुभाशुभं समुद्भूतं श्रुत्वा राजा निमित्ततः । बिजिगीषुः स्थिरमतिः सुखं याति महीं सदा ।। राजभिः पूजिताः सर्वे भिक्षवो धर्मचारिणः । विहरन्ति निरुद्विग्नास्तेन राजाभियोजिताः ।। सुखग्राह्यं लघुग्रंथं स्पष्टं शिष्यहितावहम् । सर्वज्ञभाषितं तथ्यं निमित्तं तु ब्रवीहि नः ॥ इस ग्रन्थ में उल्का, परिवेष, विद्युत्, अभ्र, सन्ध्या, मेघ, वात, प्रवर्षण, गन्धर्वनगर, गर्भलक्षण, यात्रा, उत्पात, ग्रहचार, ग्रहयुद्ध, स्वप्न, मुहूर्त, तिथि, करण, शकुन, पाक, ज्योतिष, वास्तु, इन्द्रसम्पदा, लक्षण, व्यंजन, चिह्न, लग्न, विद्या, औषध प्रभृति सभी निमित्तों के बलाबल, विरोध और पराजय आदि विषयों के निरूपण करने की प्रतिज्ञा की है । परन्तु प्रस्तुत ग्रन्थ में जितने अध्याय प्राप्त हैं, उनमें मुहूत्तं तक ही वर्णन मिलता है । अवशेष विषयों का प्रतिपादन 27वें अध्याय से आगे आने वाले अध्यायों में हुआ होगा । श्रद्धेय पं० जुगल किशोर जी मुख्तार द्वारा लिखित ग्रंथपरीक्षा द्वितीय भाग
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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