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________________ 374 भद्रबाहुसंहिता से उत्पन्न हुए हैं। इनके उदय से दुभिक्ष और भय होता है। चन्द्रकिरण, चाँदी, हिम, कुमुद या कुन्दपुष्प के समान जो तीन केतु हैं, ये चन्द्रमा के पुत्र हैं और उत्तर दिशा में दिखलाई देते हैं । इनके उदय होने से सुभिक्ष होता है। ब्रह्मदण्ड नामक युगान्तकारी एक केतु ब्रह्मा से उत्पन्न हुआ है । यह तीन चोटी वाला और तीन रंग का है, इसके उदय होने की दिशा का कोई नियम नहीं है। इस प्रकार कुल एक सौ एक केतु का वर्णन किया गया है । अवशेष 899 केतुओं का वर्णन निम्न प्रकार है __शुक्रतनय नामक जो चौरासी केतु हैं, वे उत्तर और ईशान दिशा में दिखलायी पड़ते हैं, ये बृहत्-शुक्लवर्ण, तारकाकार, चिकने और तीव्र फल युक्त होते हैं। शनि के पुत्र साठ केतु हैं, ये कान्तिमान, दो शिखा वाले और कनक संज्ञक हैं, इनके उदय होने से अतिकष्ट होता है। चोटीहीन, चिकने, शुक्लवर्ण, एक तारे के समान दक्षिण दिशा के आश्रित पैंसठ विकच नामक केतु, बृहस्पति के पुत्र हैं । इनका उदय होने से पृथ्वी में लोग पापी हो जाते हैं । जो केतु साफ दिखलायी नहीं देते - सूक्ष्म, दीर्घ, शुक्लवर्ण, अनिश्चित दिशावाले तस्कर संज्ञक हैं । ये बुध के पुत्र कहलाते हैं। इनकी संख्या 51 है और ये पाप फल वाले हैं। रक्त या अग्नि के समान जिनका रंग है, जिनकी तीन शिखाएँ हैं, तारे के समान हैं, इनकी गिनती साठ है । ये उत्तर दिशा में स्थित हैं तथा कौंकुम नामक मंगल के पुत्र हैं, ये सभी पाए फल देने वाले हैं। तामसधीस नामक तैतीस केतु, जो राहु के पुत्र हैं तथा चन्द्रसूर्य गत होकर दिखलायी देते हैं। इनका फल अत्यन्त शुभ होता है। जिनका शरीर ज्वाला की माला से युक्त हो रहा है, ऐसे एक सौ बीस केतु अग्नि विश्वरूप होते हैं । इनका फल बनते हुए कार्यों को बिगाड़ना, कष्ट पहुंचाना आदि है। श्यामवर्ण, चमर के समान व्याप्त चिराग वाले और पवन से उत्पन्न केतुओं की संख्या सतहत्तर है । इनके उदय होने से भय, आतंक और पाप का प्रसार होता है। तारापुंज के समान आकार वाले प्रजापति युक्त आठ केतु हैं, इनका नाम गयक है । इनके उदय होने से क्रान्ति का प्रसार होता है । विश्व में एक नया परिवर्तन दिखलायी पड़ता है । चौकोर आकार वाले ब्रह्म सन्तान नामक जो केतु हैं, उनकी संख्या दो सौ चार है। इन केतुओं का फल वर्षाभाव और अन्नाभाव उत्पन्न करना है । लता के गुच्छे के समान जिनका आकार है, ऐसे बत्तीस केक नामक जो केतु हैं, वे वरुण के पुत्र हैं। इनके उदय होने से जलाभाव, जलजन्तुओं को कष्ट एवं जल से आजीविका करने वाले कष्ट प्राप्त करते हैं। कबन्ध के समान आकार वाले छियानबे कबन्ध नामक केतु हैं, जो कालयुक्त कहे गये हैं। ये अत्यन्त भयंकर दुःखदायी और कुरूप हैं । बड़े-बड़े एक तारेदार नौ केतु हैं, ये विदिश समुत्पन्न हैं। इनका उदय भी कष्टकर होता है। मथुरा, सूरसेन और विदर्भ नगरी के लिए उक्त केतु अशुभाकरक होता है।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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