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________________ -366 भद्रबाहुसंहिता रोगं सस्यविनाशञ्चा दुस्कालो मृत्युविद्रवः । मासं लोहितकं ज्ञेयं फलमेवं च पञ्चधा ॥10॥ विक्षिल–यदि विकृत केतु दिखलाई पड़े तो प्रजा में फूट और क्षीण केतु दिखलाई पड़े तो पराजय, संपूर्ण शृगाकार दिखलाई पड़े तो सींगवाले पशुओं का वध और कबन्ध-धड़-आकार दिखलाई पड़े तो मनुष्यों की मृत्यु होती है। इस प्रकार के केतु में रोग उत्पन्न होते हैं, धान्य-फसल का विनाश होता है, अकाल पड़ता है. मृत्यु-उपद्रव होते हैं एवं पृथ्वी मांस और खून से भर जाती है, इस प्रकार पाँच प्रकार का फल होता है ।।9-10।। मानुष: पश-पक्षीणां समयस्तापसक्षये। विषाणी दष्ट्रिघाताय सस्यघाताय शंकरः ॥11॥ उपर्युक्त प्रकार का केतु पशु-पक्षियों के लिए मनुष्यों के समान दुःखोत्पादक, तपस्वियों को क्षय करने के लिए समय के समान, दंष्ट्री-दांत से काटने वाले व्याघ्रादि के लिए विषयुक्त सर्पादि के समान और फसल का विनाश करने के लिए रुद्र के समान है॥11॥ अंगारकोऽग्निसंकाशो धूमकेतुस्तु घुमवान् । नीलसंस्थानसंस्थानो वैडूर्यसदृशप्रमः ॥12॥ अग्नि के तुल्य केतु अंगारक, धूम्रवर्ण का केतु धूमकेतु और वैडूर्यमणि के समान नीलवर्ण का केतु नीलसंस्थान है ।।12॥ कनकामा शिखा यस्य स केतुः कनकः स्मत:। यस्योर्ध्वगा शिखा शुक्ला स केतु: श्वेत उच्यते ॥13॥ जिस केतुकी शिखा कनक के समान कान्ति वाली है वह केतु कनकप्रभ और जिस केतु के ऊपर की शिखा शुक्ल है वह केतु श्वेत कहा जाता है ।।13।। त्रिवर्णश्चन्द्रवद् वृत्त: समसर्पवदंकुरः। त्रिभिः शिरोमि: शिशिरो गुल्मकेतुः स उच्यते॥14॥ तीनवर्ण वाला एवं चन्द्रमा के समान गोलकेतु समसर्पवदंकुर नाम का होता है, तीन सिर वाला केतु शिशिर कहलाता है और गुल्म के समान केतु गुल्मकेतु कहलाता है ॥14॥ 1. विनाशश्च मु० । 2. दुःकालो मु० । 3. नाली-मु० । 4. शुक्ल मु० । 5. समसस्यं च दंकुर: मु० । 6. -केतुश्च गुल्मवत् मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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