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________________ 282 भद्रबाहुसंहिता चित्रस्थ: पीडयेत् सर्व विचित्रं गणितं लिपिम् । कोशलान् मेखलान् शिल्पं द्यूतं कनक वाणिजान् ॥120॥ चित्रा नक्षत्र स्थित शुक्र गणित, लिपि, साहित्य आदि सभी का घात करता है। कला-कौशल, चूत, स्वर्ण का व्यापार आदि को पीड़ित करता है ।। 12011 आरूढपल्लवान् हन्ति 'मारीचोदारकोशलान् । मार्जारनकुलांश्चैव कक्षमागे च पीड़यते ॥121।। चित्रा नक्षत्र पर आरूढ़ शुक्र पल्लव, सौराष्ट्र, कोशल का विनाश करता है और कक्षमार्ग में स्थित होने पर मार्जार-बिल्ली और नेवलों को पीड़ित करता है॥1211 चित्रमूलाश्च त्रिपुरां वातन्वतमथापि च। वामग: सृजते व्याधि दक्षिणो 'वणिकान् वधेत् ॥122॥ यदि वाम भाग से गमन करता हुआ शुक्र चित्रा के अन्तिम चरण में कुछ समय तक अपना विस्तार करे तो व्याधि की उत्पत्ति एवं दक्षिण ओर से गमन करता हुआ अन्तिम चरण में स्थित हो तो व्यापारियों का विनाश करता है ।।122॥ स्वातौ दशाश्चेति सुराष्ट्र चोपहिसति । आरूढो नायकं हन्ति वामो 'वामं तु दक्षिणः ॥123॥ स्वाति नक्षत्र में शुक्र गमन करे तो दशार्ण और सौराष्ट्र की हिंसा करता है तथा बायीं ओर से आरूढ़ होने वाला शुक्र बायीं ओर के नायक और दाहिनी ओर से आरूढ़ होने वाला शुक्र दाहिनी ओर के नायक का वध करता है ।।123॥ विशाखायां समारूढो 'वरसामन्त जायते। अथ विन्द्यात् महापीडां 'उशना स्रवते यदि ॥124॥ यदि विशाखा नक्षत्र में शुक्र आरूढ़ हो तो श्रेष्ठ सामन्त उत्पन्न होते हैं और शुक्र आदि स्रवण करे–च्युत हो तो महा पीड़ा होती है ॥12411 दक्षिणस्तु मृगान् हन्ति पश्चिमो पाक्षिणान् यथा। अग्निकर्माणि वामस्थो हन्ति सर्वाणि भार्गव: ॥125॥ दक्षिणस्थ शुक्र मृगों—पशुओं का विनाश करता है, पश्चिमस्थ पक्षियों का विनाश और वामस्थ समस्त अग्नि कार्यों का विनाश करता है ।125।। ___ 1. वाणिजम् मु० । 2. सिलीन्ध्र रूक्षकोशलान् मु०। 3. चित्रचूला चित्रपुरी मु० । 4. गणिकां मु० । 5. वातेऽस्तु मु० । 6. वामवासी भवेत्तमः मु०। 7. पीडयेदुशनास्तथा मु०। 8. पक्षिणश्चलितो यत: म ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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