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________________ 286 भद्रबाहुसंहिता हास-परिहास, आमोद-प्रमोद होता है । विदर्भ और दासों को भी प्रसन्नता और आमोद-प्रमोद प्राप्त होता है ।।107।। शम्बरान् पुलिन्दकाश्च श्वानषण्ढांश्च वल्कलान् । पीडयेच्च महासण्डान् शुक्रस्तादृशेन यत् ॥108॥ उक्त प्रकार का शुक्र भील, पुलिन्द, श्वान, नपुंसक, बल्कलधारी और अत्यन्त नपुंसकों को अत्यन्त पीड़ित करता है ।108॥ प्रदक्षिणे प्रयाणे तु द्रोणमेकं तदा दिशेत् । वामयाने तदा पीडां ब्रयात्तत्सर्वकर्मणाम् ॥109॥ पुनर्वसु का घातकर शुक्र के दाहिनी ओर से प्रयाण करने पर एक द्रोण प्रमाण जल की वर्षा कहनी चाहिए और बायीं ओर से प्रयाण करने पर सभी कार्यों का घात कहना चाहिए ।।109॥ पुष्यं प्राप्तो द्विजान् हन्ति पुनर्वसावपि शिल्पिनः । 'पुरुषान् धर्मिणश्चापि पीड्यन्ते चोत्तरायणाः ॥110॥ पुष्य नक्षत्र को प्राप्त होने वाला उत्तरायण शुक्र द्विज, प्रजावान् और धनुष के शिल्पी और धार्मिक व्यक्तियों को पीड़ित करता है ।110॥ वङ्गा उत्कल-चाण्डाला: पार्वतेयाश्च ये नराः। इक्षुमन्त्याश्च पीड्यन्ते आर्द्रामारोहणं यथा ॥111॥ जब शुक्र आर्द्रा में आरोहण करता है तो वंगवासी, उत्कलवासी चाण्डाल, पहाड़ी व्यक्ति और इक्षुमती नदी के किनारे के निवासी व्यक्तियों को पीड़ा होती है।111।। 'मत्स्यभागीरथीनां तु शुक्रोऽश्लेषां यदाऽऽरुहेत् । वामगः सृजते व्याधि दक्षिणो हिंसते प्रजाः॥1120 जब शुक्र बायें जाता हुआ आश्लेषा में आरोहण करता है तो मत्स्यदेश और भागीरथी के तटनिवासियों को व्याधि होती है और दक्षिण से गमन करता हुआ आरोहण करता है तो प्रजा की हिंसा होती है ।112।। मघानां दक्षिणं पावं भिनत्ति यदि भार्गवः । आढकेन तदा धान्यं प्रियं विन्द्यादसंशयम् ॥113॥ ___ 1. मणिबन्धांश्च मु० । 2. महामु० मु० । 3. प्राज्ञांश्च धनुशिल्पिनः मु० । 4. मरुण्डा मु० । 5. दुकूल- मु० । 6. यदा मु०। 7. पणीभीमरथीनां मु० । 8. सृजति मु० । 9. हिंसति ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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