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________________ चतुर्दशोऽध्यायः ___245 को चन्द्रमा के शृगों का अवलोकन करना चाहिए ।।133।। वामशृंगं यदा वा स्यादुन्नतं दृश्यते भृशम् । तदा सृजति लोकस्य दारुणत्वं न संशयः ॥134॥ यदि चन्द्रमा का बायाँ शृग उन्नत मालूम हो तो लोक में दारुण भय का संचार होता है, इसमें संशय नहीं है ।।13411 ऊर्ध्वस्थितं नृणां पापं तिर्यस्थं राजमन्त्रिणाम् । अधोगतं च वसुधां सर्वा हन्यादसंशयम् ॥135॥ ऊर्ध्वस्थित चन्द्रमा मनुष्यों के पाप का, तिर्यस्थ राजा और मन्त्री के पाप का, अधोगत समस्त पृथ्वी के पाप का निस्सन्देह विनाश करता है ।।13511 शस्त्रं रक्ते भयं पीते धूमे दुभिक्षविद्रवे। चन्द्र सदोदिते ज्ञेयं भद्रबाहुवचो यथा ॥136॥ चन्द्रमा यदि रक्तवर्ण का उदित हो तो शस्त्र का भय, पीतवर्ण का हो तो दुर्भिक्ष का भय और धूम्रवर्ण होने पर आतंक का सूचक होता है, ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है ।।136।। दक्षिणात्परतो दृष्ट: चौरदूतभयंकरः।। अपरे तोयजीवानां वायव्ये हन्ति वै गदम् ॥137॥ यदि दक्षिण की ओर शृग या रक्तवर्णादि दिखलाई पड़ें तो चोर और दूत को भयकारी होता है, पूर्व की ओर दिखलाई पड़े तो जल-जन्तुओं का और वायव्य दिशा की ओर दिखलाई पड़े तो रोग का विनाश होता है ।। 137॥ विवदत्सु च लिगेषु यानेषु प्रवदत्सु च । वाहनेषु च हृष्टेषु विन्द्याद्भयमुपस्थितम् ॥138॥ शिवलिंगों में विवाद होने पर, सवारियों में वार्तालाप होने पर और वाहनों में प्रसन्नता दिखलाई पड़ने पर महान भय होता है ।।138॥ ऊर्ध्वं वषो यदा नर्देत् तदा स्याच्च भयंकरः । ककदं चलते वापि तदाऽपि स भयंकरः ॥139॥ यदि बैल-सांड ऊपर को मुँह कर गर्जना करे तो अत्यन्त भयंकर होता है और वह अपने ककुद (कुब्ब) को चंचल करे तो भी भयंकर समझना चाहिए ।।139॥ 1. उद्यत मु० । 2. शस्त्रकोटेषु बालेषु विवादेषु च लिंगिषु मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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