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________________ द्वादशोऽध्यायः 169 विवेचन–मेघगर्भ की परीक्षा द्वारा वर्षा का निश्चय किया जाता है। बराहमिहिर ने बतलाया है-“दैवविदवहितचित्तो द्यु निशं यो गर्भलक्षणे भवति । तस्य मुनेरिव वाणी न भवति मिथ्याम्बुनिर्देशे" ॥ अर्थात् जो देव का जानकार पुरुष रात-दिन गर्भलक्षण में मन लगाकर सावधान चित्त से रहता है, उसके वाक्य मुनियों के समान मेघगणित में कभी मिथ्या नहीं होते । अतः गर्भ की परीक्षा का परिज्ञान कर लेना आवश्यक है। आचार्य ने इस अध्याय में गर्भधारण का निरूपण किया है। मार्गशीर्ष मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से जिस दिन चन्द्रमा पूर्वाषाढा नक्षत्र में होता है, उस दिन से ही सभी गर्मों का लक्षण जानना चाहिए। चन्द्रमा जिस नक्षत्र में रहता है, यदि उसी नक्षत्र में गर्भ धारण हो तो उस नक्षत्र से 195 दिन के उपरान्त प्रसवकाल-वर्षा होने का समय होता है। शुक्लपक्ष का गर्भ कृष्णपक्ष में और कृष्णपक्ष का गर्भ शुक्लपक्ष में, दिन का गर्भ रात्रि में, रात का गर्भ दिन में, प्रातःकाल का गर्भ सन्ध्या में और सन्ध्या का गर्भ प्रातःकाल में जल की वर्षा करता है। मार्गशीर्ष के आदि में उत्पन्न गर्भ एवं पौष मास में उत्पन्न गर्भ मन्दफल युक्त हैं—अर्थात् कम वर्षा होती है। माघ मास का गर्भ श्रावण कृष्णपक्ष में प्रातःकाल को प्राप्त होता है । माघ के कृष्ण पक्ष द्वारा भाद्रपद मास का शुक्लपक्ष निश्चित है। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में उत्पन्न गर्भ भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में जल की वर्षा करता है । फाल्गुन के कृष्ण पक्ष का गर्भ आश्विन के शुक्लपक्ष में जल की वृष्टि करता है। पूर्व दिशा के मेघ जब पश्चिम की ओर उड़ते हैं और पश्चिम के मेघ पूर्व दिशा में उदित होते हैं, इसी प्रकार चारों दिशाओं के मेघ पवन के कारण अदला-बदली करते रहते हैं, तो मेघ का गर्भकाल जानना चाहिए। जब उत्तर, ईशानकोण और पूर्व दिशा वायु में आकाश विमल, स्वच्छ और आनन्दयुक्त होता है तथा चन्द्रमा और सूर्य स्निग्ध, श्वेत और बहुत घेरेदार होते हैं, उस समय भी मेघों के गर्भधारण का समय रहता है । मेघों के गर्भधारण करने का समय मार्गशीर्ष-अगहन, पौष, माघ और फाल्गुन हैं । इन्हीं महीनों में मेघ गर्भ धारण करते हैं । जो व्यक्ति गर्भधारण का काल पहचान लेता है,वह गणित द्वारा बड़ी ही सरलता से जान सकता है कि गर्भधारण के 195 दिन के उपरान्त वर्षा होती है। अगहन के महीने में जिस तिथि को मेघ गर्भ धारण करते हैं, उस तिथि से ठीक 195वें दिन में अवश्य वर्षा होती है। अतः गर्भधारण की तिथि का ज्ञान लक्षणों के आधार पर ही किया जा सकता है। स्थूल और स्निग्ध मेघ जब आकाश में आच्छादित हों और आकाश का रंग काक के अण्डे और मोर के पंख के समान हो तो मेघों का गर्भधारण समझना चाहिए। इन्द्रधनुष और गम्भीर गर्जनायुक्त, सूर्याभिमुख, बिजली का प्रकाश करने वाले मेघ हों तो;
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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