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________________ 168 भद्रबाहु संहिता मन्दोदा: प्रथमे मासे पश्चिमे ये च कीर्तिताः । शेषा बहूदका ज्ञेया: प्रशस्तैर्लक्षणंर्यदा ॥33॥ पहले दिन मेघगर्भो का निरूपण किया है, उनमें से उपर्युक्त मेघगर्भ पहले अवशेष प्रशस्त शुभ लक्षणों के अनुसार महीने में कम जल की वर्षा करते हैं, अधिक जल की वर्षा करते हैं |13311 यानि रूपाणि दृश्यन्ते गर्भाणां यत्र यत्र च । तानि सर्वानि ज्ञेयानि भिक्षूणां भैक्षवर्तनाम् ॥34॥ मेघगर्भों का जहाँ-जहाँ जो-जो रूप दिखाई देता हो, मधुकरीवृत्ति करने वाले साधु को वहाँ वहाँ उसका निरीक्षण करना चाहिए ॥34॥ सन्ध्यायां यानि रूपाणि मेघेष्वभ्रषु यानि च । तानि गर्भेषु सर्वाणि यथावदुपलक्षयेत् ॥35॥ मेघों का जो रूप सन्ध्या समय में हो, उनका गर्भकाल में अवस्था के अनुसार निरीक्षण करना चाहिए ॥35॥ ये केचिद् विपरीतानि पठ्यन्ते तानि सर्वशः । लिंगानि तोयगर्भेषु भयदेषु भवेत् तदा ॥36॥ प्रतिपादित शुभ चिह्नों के विपरीत चिह्न यदि दिखलाई पड़ें तो उन चिह्नों वाला मेघगर्भ भय देने वाला होता है || 3611 गर्भा यत्र न दृश्यन्ते तत्र विन्द्यान्महद्भयम् । उत्पन्ना वा स्रवन्त्याशु भद्रबाहुवचो यथा ॥37॥ जहाँ मेघगर्भ दिखलाई नहीं पड़ें, वहाँ अत्यन्त भय समझना चाहिए । उत्पन्न हुई फसल शीघ्र नष्ट हो जाती है, ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है || 37 निर्ग्रन्था यत्र गर्भाश्च न पश्येयुः कदाचन । 2 तं च देशं परित्यज्य सगमं संश्रयेत् त्वरा ॥38॥ निर्ग्रन्थ मुनि जिस देश में मेघगर्भ न देखें, उस देश को छोड़कर शीघ्र ही उन्हें मेघगर्भ वाले अन्य देश का आश्रय लेना चाहिए ॥38॥ इति श्रीभद्रबाहु के संहितायां सकलमुनिजनानन्द द्रवाहविरचिते महानैमित्तशास्त्रे गर्भवातलक्षणं द्वादशमं परिसमाप्तम् । 1. यथावस्थं निरीक्षयेत् मु० 12. तं देशं प्रथमं त्यक्त्वा सगर्भ त्वरितं श्रयेत् मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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