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________________ द्वादशोऽध्यायः 163 अतः मुनिजन इस निमित्तद्वारा पहले से ही सुकाल दुष्काल का ज्ञान कर विहार करते हैं ॥1॥ ज्येष्ठा-मलममावस्यां मार्गशीर्ष प्रपद्यते। मार्गशीर्षप्रतिपदि गर्भाधानं प्रवर्तते ॥2॥ मार्गशीर्ष-अगहन की अमावस्या को, जिस दिन चन्द्रमा ज्येष्ठा या मूल नक्षत्र में होता है, मेघ गर्भ धारण करते हैं अथवा मार्गशीर्ष शुक्ला प्रतिपदा को, जबकि चन्द्रमा पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में होता है, मेघ गर्भ धारण करते हैं ।।2।। "दिवा समुत्थितो गर्भो रात्रौ विसृजते जलम् । रात्रौ समुत्थितश्चापि दिवा विसृजते जलम् ॥3॥ दिन का गर्भ रात्रि में जल की वर्षा करता है और रात्रि का गर्भ दिन में जल की वर्षा करता है ॥3॥ सप्तमे सप्तमे मासे सप्तमे सप्तमेऽहनि । गर्भाः पाकं विगच्छन्ति यादृशं तादृशं फलम् ॥4॥ सात-सात महीने और सात-सात दिन में गर्भ पूर्ण परिपाक अवस्था को प्राप्त होता है। जिस प्रकार का गर्भ होता है, उसी प्रकार का फल प्राप्त होता है। अभिप्राय यह है कि गर्भ के परिपक्व होने का समय सात महीना और सात दिन है । वाराही संहिता में यद्यपि 196 दिन ही गर्भ परिपक्व होने के लिए बताये गए हैं, किन्तु यहां आचार्य ने सात महीने और सात दिन कहे हैं । दोनों कथनों में अन्तर कुछ भी नहीं है, यतः यहाँ भी नक्षत्र मास गृहीत हैं, एक नक्षत्र मास 27 दिन का होता है, अत: योग करने पर यहाँ भी 196 दिन आते हैं ॥4॥ पूर्वसन्ध्या-समुत्पन्नः पश्चिमायां प्रयच्छति। पश्चिमायां समुत्पन्नः पूर्वायां तु प्रयच्छति ॥5॥ पूर्व सन्ध्या में धारण किया गया गर्भ पश्चिम सन्ध्या में बरसता है और पश्चिम में धारण किया गया गर्भ पूर्व सन्ध्या में बरसता है । अभिप्राय यह है कि प्रातः धारण किया गया गर्भ सन्ध्या समय बरसता है और सन्ध्या समय धारण किया गया गर्भ प्रातः बरसता है ॥5॥ नक्षत्राणि मुहूर्ताश्च सर्वमेवं समादिशेत्। 'षण्मासं समतिक्रम्य ततो देव: प्रवर्षति ॥6॥ ___1. प्रवर्तते मु० C. । 2. दिवसो मुल A. | 3. च मु० । 4. षण्मासान् मु० ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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