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________________ 162 भद्रबाहुसंहिता संवत्सर निकालने की प्रक्रिया संवत्कालो ग्रहयुतः कृत्वा शून्यरसैहृतः । शेषाः संवत्सरा ज्ञेयाः प्रभवाद्या बुधैः क्रमात् ॥ अर्थात-विक्रम संवत् में 9 जोड़कर 60 का भाग देने में जो शेष रहे, वह प्रभवादि गत संवत्सर होता है, उससे आगे वाला वर्तमान होता है। उदाहरणसंवत् 2047, इसमें 9 जोड़ा तो 2047+9=2056: 60=34 उपलब्धि शेष 16, अतः 16वीं संख्या चित्रभानु की थी, जो गत हो चुका है, वर्तमान में सुभानु संवत् है, जो आगे बदल जाएगा, और वर्षान्त में तारण हो जाएगा। प्रभवादि संवत्सर बोधक चक्र पांच वर्ष का एक युग होता है, इसी प्रमाण से 60 वर्ष के 12 युग और उनके 12 स्वामी हैं -- विष्णु, बृहस्पति, इन्द्र, अग्नि, ब्रह्मा, शिव, पितर, विश्वेदेवा, चन्द्र, अग्नि, अश्विनीकुमार और सूर्य । मतान्तर से प्रथम बीस संवत्सरों के स्वामी ब्रह्मा, इसके आगे बीस संवत्सगे के स्वामी विष्णु और इससे आगे वाले बीस संवत्सरों के स्वामी रुद्र-शिव हैं। द्वादशोऽध्यायः अथात: सम्प्रवक्ष्यामि गर्भान् सर्वान् सुखावहान् । भिक्षकाणां विशेषेण परदत्तोपजीविनाम् ॥1॥ अब सभी प्राणियों को सुख देने वाले मेघ के गर्भधारण का वर्णन करता हूँ। विशेष रूप से इस निमित्त का फल दूसरों के द्वारा दिये गए भोजन को ग्रहण करने वाले भिक्षुकों के लिए प्रतिपादित करता हूँ। तात्पर्य यह है कि उक्त निमित्त द्वारा वर्षा और फसल की जानकारी सम्यक् प्रकार से प्राप्त की जाती है। जिस देश में सुभिक्ष नहीं, उस देश में त्यागी, मुनियों का निवास करना कठिन है। ___ 1. भिक्षाचराणां मु० A. ।
SR No.023114
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Jyotishacharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1991
Total Pages620
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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